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________________ मुझ मनि लागिय खंति जालंधर देसह भणिय । तीरथ वंदण रेसि नयरकोटि तउ आवियउ || १ || बाणगंगा पातालगंग व्याह नइ जसु वणराई घण घाट वाट ति घाटिहिं तहि महिमा भडार पहिलउं पहिलइ जिण दीठउ संतिजिणिद नयण अमिय रस जिणहर बीजइ रीजु मन अधिकेरउं जहि सोवनमय बिंब रूपचंद रायह जिणि दीठइ संतोसु मण आदिहि अंधारइ उद्योत जयउ सुजगगुरू जइ त्रीजइ प्रासादि सरवरि राजमराल जिम । संभाविउ रिसहेसु चंपकि चंदनि श्रुति जलिहि ||६|| श्री जयसागर महोपाध्याय कृत श्री नगरकोट महातीर्थ चेत्य परिपाटी अलजउ अंगिन माइ माइ ताय घरु सरिय सयल मह कज्ज तहिं रिसहेसर जो हीमालय हुंत राय सुसम्मिहि नेमिसरि जयवंत, कंगड-कोटि हिं २० ] हिव चडियउ चमकत अति ऊंचइ गढि कांगडए । इहु जाणे मइ किद्ध सिद्धिसिला आरोहणउ ॥७॥ Jain Educationa International तहिं । आगलिय ||२॥ भवणि । पारणउं ||३|| For Personal and Private Use Only ऊपजए । तणउं ॥४॥ ऊससए । वीरवरू ||५|| वीसरिय । दंसणिहि ||८|| जसु पयतलि लुलइ । चंद्रबंसि जे राय राणी अंबिकदेवि पसाइ तहिं मन वंछित फल मिलई ॥ १० ॥ जाणियउ । आणियउ ||९|| www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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