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________________ भटनेर के संघपति वीकमसी नाहर ने वड़ गच्छीय आचार्य भद्रेश्वर सूरि के समय नगरकोट का यात्री संघ निकाला था, उस समय कांगड़ा के राजा संसारचंद्र थे। उस समय संघ ने नगरकोट के वीरप्रभु जिनालय आदिनाथ, शान्तिनाथ जिनालयों की पूजा की और कांगड़ा के आदिनाथ और अम्बिका मन्दिर की पूजा करने का उल्लेख किया है। इस पन्द्रहवीं शती के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक रास को इस ग्रन्थ में दे रहे हैं। __विद्वद्वर्य श्री हीरालाल जी दुग्गड़ ने "मध्य एशिया और पंजाब में जैन धर्म" के पृ० १७२ में लिखा है कि श्री अभय देवसूरि नवांगी टीकाकार के समकालीन आचार्य गुणचंद्रसूरि जो वज्री शाखा के चन्द्र गच्छ के आचार्य श्री अभयदेवसरि के शिष्य थे और विक्रम की बारहवीं शताब्दी में हो गये हैं। उन्होंने जालंधर कांगड़ा प्रदेश में विचरण कर अनेक वादियों को जीता था और जैन धर्म का प्रचार-प्रसार भी किया था जिसका वर्णन इस प्रकार है श्रीमान् श्रीवज्रमूलः प्रबलतर महोत्तुंगशाखा शताद्याः सतेजः । साधु-संघादिपदल पटलोग्रौर कीत्ति प्रसूनः।। शश्चद्वांद्यातिरक्त फल निवयमलं पुण्य भाजां। प्रयच्छतु गच्छे स चन्द्रगच्छरद्य जगति विजयते कल्पवृक्षः ॥१॥ तस्मिन् प्रभुः श्री गुणचंद्र नामः सूरीश्वरः संयमिनां धुरीणः। वभूव जालंधर पत्तनेपि यो वादि वृदं निखिलं जिगाया ॥२॥ वस्तुतः ये नवांगी वृत्तिकार अभयदेवसूरि के शिष्य ही थे जिनकी आचार्य पद के अनन्तर देवभद्रसूरि नाम से प्रसिद्धि हुई। तत्कालीन गन्थों में चंद्रकुल वज्र शाखा नाम ही प्रयुक्त किया गया था उस समय इस सुविहित परम्परा के अनेक आचार्य हुए हैं जो सभी प्रान्तों में विचरण करते थे। अब इस तीर्थाधिराज के स्तवन जो विविध यात्राओं के समय विद्वानों द्वारा निर्मित हैं, अर्थ सहित दिये जा रहे हैं । अत्यधिक जानकारी हेतु 'विज्ञप्ति त्रिवेणी' एवं श्री हीरालाल दुग्गड़ लिखित 'मध्य एशिया और पंजाब में जैन धर्म' देखें। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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