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________________ अम्बिका और लंगड़ा वीर का उल्लेख है। चैत्य परिपाटी में वीर लंगड़ को 'वीर ल उकड़' लिखा है। पंचनदी साधना गीतादि में वणित 'खोडिया खेत्रपाल' यही लगता है। प्रश्न यह है कि ५२ वीरों के अन्तर्गत और खेतल नाम से उल्लिखित वीरतिलक ही लंगड़ वीर, खंज या खोडिया क्षेत्रपाल न हो ? नगरकोट के वीरा सोनार को क्षेत्रपाल हो जाने पर पंजाब में भी मान्य किया गया हो, यह असम्भव नहीं किन्तु श्री जिनेश्वरसूरिजी महाराज ने तो उसे 'वीरतिलक' नाम देकर विज्जलपुर-बीजापुर के वासुपूज्य जिनालय में ही विराजमान किया था। सं० १४९७ में रचित नगरकोट चैत्य परिपाटी में १ राजा सुशर्म का आदिनाथ जिनालय, २ आलिगवसही में मणिमय २४ बिम्ब, ३ रायविहार राजा रूपचंद कारित महावीर स्वामी ४ श्रीमाली धिरिया का पार्श्वनाथ जिनालय, ५ खरतर विधि प्रासाद में शान्तिनाथ जिनालय का उल्लेख है। जयसागरोपाध्याय की विज्ञप्ति-त्रिवेणी व चैत्यपरिपाटी के तेरह वर्ष पश्चात ही यह चैत्यपरिपाटी बनी है जिसमें एक मन्दिर अधिक है। आलिग वसही के २४ बिम्बों में आदिनाथ स्वामी को मूलनायक मान लेने से श्रीमाल घिरिया का पार्श्वनाथ जिनालय ही बाद में बना प्रमाणित होता है। कनकसोम कृत आदीश्वर स्तोत्र में आदिनाथ शांतिनाथ और महावीर जिनालय का उल्लेख किया है पर साधुसुन्दर ने केवल आदीश्वर भगवान का ही स्तवन बनाया है। ____सतरहवीं शताब्दी के बाद धीरे-धीरे मन्दिर लुप्त होते गये मालूम देते हैं। डा. बनारसीदास जैन के “जैन इतिहास में कांगड़ा" (जैन प्रकाश वर्ष १० अंक ९) के अनुसार अम्बिका देवी के मन्दिर के दक्षिणओर दो छोटे छोटे मन्दिर है जिनके द्वार पश्चिम की ओर हैं। एक में तो केवल पादपीठ रह गया है जो किसी जैन मूर्ति का होगा। दूसरे में आदिनाथ भगवान को बैठी प्रतिमा है, इसके पीठ पर एक लेख खुदा है जो अब मध्यम पड़ गया है। कनिंघम साहब ने इसमें सं० १५२३ पढ़ा है जो महाराज संसारचन्द्र प्रथम का समय था। यह काली देवी के मन्दिर में कनिंघम साहब ने एक लेख के छाप ली थी जिसपर 'स्वस्तिश्री जिनाय [ १७ Jain Educatena International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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