SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सं० १२७७ में आषाढ सुदि १० को श्री जिनपतिसूरि का स्वर्गवास हो जाने पर उनके पट्ट पर श्रीजिनेश्वरसूरि (द्वितीय ) बैठे। उनका मुनि मण्डल वहां चातुर्मास करता रहता, श्रावकों का भी आवागमन रहता । संध यात्रा, प्रतिष्ठादि में पूर्ण योगदान रहता था। सं० १३०६ मिती माघ सुदि १० को श्री शान्तिनाथ, अजितनाथ, धर्मनाथ, वासुपूज्य, मुनिसुव्रत, श्री सीमंधर स्वामी आदि प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा सा० विमलचंद, हीरा आदि समुदाय ने कराई थी। गुर्वावली में लिखा है कि नगरकोट के प्रासाद में प्रचुर द्रव्यव्यय करके सेठ विमलचंद ने प्रभु शांतिनाथ प्रतिष्ठित कराये। अजितनाथ भगवान की जन साधारण ने, धर्मनाथ स्वामी की विमलचंद सेठ के पुत्र क्षेमसिंह ने,श्री वासुपूज्य स्वामी की समस्त श्राविकाओं ने, मुनिसुव्रत स्वामी की गोष्ठिक देहड़ ने, सीमंधर स्वामी की गोष्टिक हीरा ने तथा पद्मनाभ प्रभु की प्रतिष्ठा महा भावसार हाला ने पालनपुर में कराई। श्री अभयतिलकोपाध्याय कृत ताड़पत्रिय द्वयाश्रय काव्य वृत्ति में सेठ विमलचंद का चित्र भी प्राप्त है। प्रशस्ति का २१ वां श्लोक देखिये। श्री प्रल्हादनपत्तने जिनपति शान्ति प्रतिष्ठापया चक्रेसरि जिनेश्वर स्तदनुयः संस्थापयामासिवान् प्रासादे प्रवरे सुशर्मनगरे मन्ये प्रतिष्ठा जये स्वं प्रापय्य ततः सुशर्मनगरे संस्थापयत् शिवे ॥२१॥ सं० १४८४ में श्री जयसागरोपाध्याय जब संघ सहित यात्रार्थ पधारे तो वहां के दर्शन कर इतना आनंद मिला कि शरीर रोमाञ्चित हो गया। प्यासे को मानो सुधारस मिला हो, ऐसी अनुभूति हई। सेठ विमलचंद के पुत्र सेठ क्षीमसिंह कारित प्रासाद में खरतर गच्छ नायक श्री जिनेश्वरसूरि प्रतिष्ठित शान्तिनाथ स्वामी को ज्येष्ठसुदि ५ के दिन वन्दन किया। अन्य जिनालयादि का चमत्कारिक वर्णन जानने के लिए विज्ञप्ति-त्रिवेणी' देखना चाहिए। उस समय वहाँ शान्तिनाथ जिनालय के अतिरिक्त २ राजा रूपचन्द का बनवाया हुआ स्वर्णमय प्रतिमा वाला महावीर स्वामी का [ १५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy