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नदियों, और जंगलों को पीछे छोड़ता हुआ गोपाचलपुर-तीर्थ को पहुंचा। वहां पर सं० घिरिराज के बनाये हुए विशाल और उच्च मन्दिर में विराजमान श्री शान्तिनाथ भगवान के दर्शन-वंदन किए। वहाँ पर पांच दिन मुकाम करके फिर आगे चले और विपाशा के तट पर बसे हुए नन्दवनपुर में संघ ने श्रीमहावीर स्वामी के सुन्दर मन्दिर में प्रभु-दर्शन किए। वहां से कोटिल. ग्राम पहुंच कर श्री पार्श्वनाथ २ भगवान की यात्रा की। वहां से फिर पर्वतों-घाटों और शिखरों को उल्लंघन कर कोठीनगर में श्री महावीर देव के दर्शन किए। इस गांव में बहुसंख्यक श्रावक थे अतः दश दिन पर्यन्त ठहरना पड़ा। सं० सोमा ने यहां पर सारे संघ को प्रीतिभोज दिया और नाना प्रकार के वस्त्राभूषणादि द्वारा सार्मिक बन्धुओं को सत्कृत किया। ग्यारहवें दिन यहां से प्रयाण करके चलते हुए कुछ दिन सप्तरुद्र जलाशय के महाप्रवाह वाले जलमार्ग को नौकाओं द्वारा ४० कोश पार किया और सुखपूर्वक देवपालपुर पत्तन को संघ पहुंचा। वहाँ के कवला गच्छोय सं० घटसिंह आदि और खरतर गच्छीय सा० सारंग आदि श्रीमान् श्रावकों ने संघ का बड़े भारी समारोह के साथ नगर प्रवेश कराया। यहां भी कोठीपुर की तरह सार्मिकवात्सल्य आदि संघ सत्कार सघपति महाधर आदि ने सोत्साह प्रेमपूर्वक किए। यहाँ के संघ ने तो उपाध्यायजी को चातुर्मास हेतु आग्रह किया तो क्षेत्र की योग्यतानुसार मेघराज गणि, सत्यरुचि गणि, कुलकेसरि मुनि और रत्नचन्द्र क्षुल्लक-इन चार शिष्यों को चातुर्मास करने के लिए छोड़ दिए और दश दिन आनन्दपूर्वक व्यतीत कर संघ ने फरीदपुर की ओर प्रयाण किया। जाते समय जो दृश्य दृग्गोचर हुए थे वे फिर देखते हुए विपाशा नदी को पीछे छोड़कर पहले मुकाम वाले मैदान में जा पहुंचे। फरीदपुर के लोग स्वागतार्थ सामने आये। सं० सोमा के भाई पासदत्तहेमाने नागरिकों और यात्रियों को सम्मानित किया। २. उपाध्यायजी ने यहाँ पंच वर्ग परिहारमय ७ श्लोकों द्वारा स्तवना की जो विज्ञप्ति
त्रिवेणी में प्रकाशित हैं।
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