________________
रामा सा० सोमा, सा० हेमा, सा० देवा और दस्सू आदि श्रावक भी आए थे जो कार्य समाप्ति के बाद उपाध्यायजी को अपने साथ अपने नगर ले गए । वहाँ से ज्योतिषी द्वारा दिए शुभ मुहूर्त में सा० सोमा के संघ ने प्रस्थान किया । विपासा ( व्यासा ) नदी पार कर अनेक मार्गवर्त्ती गांवों को उल्लंघन कर निश्चिन्दीपुर के पास आकर सरोवर के किनारे संघ ठहरा। वहाँ के लोग संघ दशनार्थ आए तो वहाँ का राजा सुरत्राण ( सुलतान) भी अश्वारूढ़ होकर अपने दीवान के साथ आया । उपाध्यायजी के उपदेश से प्रभावित होकर साधुओं को स्तुति - प्रणाम कर संघपति सोमा को सम्मानित कर अपने स्थान को लौटा । संघ वहाँ से क्रमशः तलपाटक पहुंचा, देवपालपुर का संघ गुरुवन्दनार्थ आया और संघ को अपने यहाँ ले जाने का आग्रह करने लगा । पर संघ ने आगे प्रयाण किया और व्यासा के किनारे किनारे चलता हुआ मध्य देश में पहुँचा । एक दिन, एक ओर से खोखरेश यशोरथ के सैन्य का और दूसरी ओर से सिकन्दर के सैन्य का कोलाहल सुनकर संघ घबरा गया और वापस लौटकर व्यासा को नौकाओं से पार कर कुंगुद घाट से होकरमध्य, जांगल, जालन्धर और कश्मीर इन चार देशों की सीमा के मध्यवर्ती हरियाणा नामक स्थान में पहुँचा । कानुक यक्ष के मन्दिर के निकट निरुपद्रव स्थान में पड़ाव डाला और शुभ मुहूर्त में चैत्र सुदि ११ को नाना प्रकार के बाजित्रों के बजने पर सोमा सेठ को संघपति पद दिया । मल्लिकवाहन के सं० मागट के पौत्र और सा० देवा के पुत्र उद्धर को महाधर पद एवं सा० नीवा, रूपा, और सा० भोजा को भी महाधर पद दिया गया। सैल्लहस्त का पद बुच्चास गोत्रीय सा० जिनदत्त को समर्पण किया। पांच दिन तक गर्जन - तर्जन, वर्षा तूफान और ओलों के उपद्रव के पश्चात् छठे दिन संघ का प्रयाण हुआ । सपादलक्ष पर्वत की सघन झाड़ियों और तंग घाटियों को पार करते हुए व्यासा के तट पर पहुंचा। मार्गवर्ती नगरों गांवों के लोकों और अधिपतियों से मिलता हुआ क्रमशः पातालगंगा के तट
सा०
८]
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org