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________________ का वर्णन है। पुरातत्त्वाचार्य श्री जिनविजयजी ने बहुत से विज्ञप्तिपत्रों का संग्रह सिंघी ग्रन्थमाला से प्रकाशित किए हैं। इस विज्ञप्ति-त्रिवेणी को तो आपने सन् १९१६ में आत्मानन्द सभा, भावनगर से प्रकाशित करवाया था जिसमें विस्तृत प्रस्तावना और हिन्दी सार भी बड़ा उपयोगी और अनेक ज्ञातव्यों से परिपूर्ण ग्रथ था। अब वह अनुपलब्ध है अतः विज्ञप्ति-त्रिवेणी का अति सक्षिप्त सार यहाँ दे रहे हैं। श्री जिनभद्रसूरिजी के आदेश से श्री जयसागरोपाध्याय, मेघराज गणि, सत्यरुचि गणि, पं० मतिशील गणि और हेमकंजर मुनि आदि शिष्यों के साथ सिन्ध प्रान्त में विचरते हुए सं० १४८३ का चातुर्मास 'मम्मणवाहण' नगर में किया था। चातुर्मास के पश्चात् सं० सोमाक के पुत्र सं० अभय चन्द्र ने महातीर्थ मरुकोट्ट (मरोट) की यात्रा के लिए संघ निकाला। उपाध्यायजी भी संघ के साथ यात्रा कर वापस मम्मणवाहण पधारे। फरीद पुर के श्रावकों की विनती स्वीकार कर द्रोहडोट्टादि गाँवों में होते हुए फरीदपुर पहुंचे। अनेक धर्म कार्य हुये, उपाध्यायजी के उपदेश से अनेक ब्रह्म क्षत्रिय और ब्राह्मणादि भी जैन धर्मानुयायी हुए। एक दिन व्याख्यान के पश्चात् किसी आगन्तुक यात्री से नगरकोट महातीर्थ के सम्बन्ध में जानकारी मिली कि यह सुशर्मपुर श्री आदिनाथ स्वामी का प्राचीनतम तीर्थ है और वर्तमान में मुसलमानों द्वारा अनेक तीर्थस्थल नष्ट-भ्रष्ट हो जाने पर भी वह अखण्डित और सप्रभाव है। ___ तीर्थ का वर्णन सुनकर उपाध्यायजी ने फरीदपुर निवासी सेठ राणा के सोमचन्द्र, पार्श्वदत्त और हेमा नामक पुत्रों को उपदेश दिया। उन्होंने संघ निकालने की तैयारी की और ग्रामान्तरों में आमंत्रण पत्र भेज दिए। इसी बीच उपाध्यायजी को माबारखपुर के श्रावक अपने गांव में ले गए जहाँ १०० घर श्रावकों को बस्ती थी। वहाँ अनेक धर्म कार्य हुए, सा. शिवराज ने अपने पिता हरिचंद सेठ के साथ आदि जिन की प्रतिष्ठा उपाध्याय जी के कर कमलों से कराई और संघवात्सल्य दिया। फरीदपुर से सा० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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