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________________ के बीच प्रकाशित है। सोमकुंजर कृत खरतरगच्छ पट्टावली (गा० ३०) एवं जेसलमेर संभवनाथ जिनालय प्रशस्ति (सं० १४९७) प्रकाशित है। आपका स्वर्गवास सं० १५१५ के आसपास अनुमानित है। आप महोपाध्याय पद प्रतिष्ठित थे अतः तत्कालीन विद्वानों और उपाध्यायों में सर्वोच्च थे। आपकी रचनाएँ प्रचुर परिमाण में उपलब्ध हैं। श्री जयसागरोपाध्याय के चित्र भी उपलब्ध हैं। हमारे संग्रह के त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र के कुछ पत्रों में आपके परिवार-भाई और भौजाइयों के चित्र हैं। आपका चित्र भी आचार्य महाराज के साथ है जो संभवतः जिनवद्ध नसूरि या जिनभद्रसूरि का संभव है, क्योंकि सं० १४७५ में प्राप्त उपाध्याय पद उसमें प्रयुक्त है। श्री पूरणचंद्रजी नाहर के संगृहीत प्रति में भी आपका चित्र है। गणिवर्य श्री बुद्धिमुनिजी से प्राप्त स्वर्णाक्षरो कल्पसूत्र की प्रशस्ति हमने "मणिधारी अष्टम शताब्दी ग्रन्थ में प्रकाशित की थी जो श्री जयसागरोपाध्याय रचित है और उसमें आबू खरतरवसही निर्माता अपने भ्राता मण्डलिक के परिवार का विशद् वर्णन है और हमारे सम्पादित ऐतिहासिक जैनकाव्य संग्रह में भी जयसागरोपाध्याय प्रशस्ति है जिसमें महोपाध्याय जी के जीवनी पर महत्वपूर्ण विशद् वर्णन प्राप्त है। - महातीर्थ नगरकोट-कांगड़ा को प्रकाश में लाने का श्रेय जयसागरोपाध्यायकृत विज्ञप्ति-त्रिवेणी' संज्ञक विज्ञप्तिपत्र को है। जो उपाध्याय जी ने महान् शासनप्रभावक आचार्य प्रवर श्रीजिनभद्रसूरिजी महाराज को सिंध प्रान्त के मम्मणवाहण स्थान से अणहिलपुर पाटण को भेजा था जिसमें इस तीर्थयात्रा का विशद् वर्णन है। खरतरगच्छ में यह प्रथा पूर्वकाल से चली आ रही थी यह पत्र सं० १४८४ के माध सुदि १० को लिखा गया था तो इससे अर्द्ध शताब्दी पूर्व सं० १४३० का विज्ञप्ति महालेख' भी लोकहिताचार्य को श्री जिनोदयसूरिजी द्वारा प्रेषित है जिनमें पूर्व देश की यात्रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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