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________________ जिनदत्त से जयसागर हो गया। आपका जन्म सं० १४४५-५० के बीच और दीक्षा सं० १४६० के आस पास होनी चाहिए। श्रीजिनवर्द्धनसूरि जी आपके विद्यागुरु थे तथा पीछे से गच्छ भेद हो जाने से आप श्री जिनभद्रसूरिजी के आज्ञानुवर्ती रहे और उन्होंने आपको संवत् १४७५ में उपाध्याय पद दिया था। सं० १४८४ में आप सिंध-पंजाब में विचरे और नगरकोट महातीर्थादि की यात्रा की थी जिसका विशेष वर्गन आपने विज्ञप्ति-त्रिवेणी में किया है। सं० १४८७ में आपके सानिध्य में शत्रुजयादि महातीर्थों का यात्री संघ सं० मंडलिक ने निकाला व दूसरी बार सं० १५०३ में यात्री संघ निकाला। आपने गुजरात राजस्थान पंजाब के अनेक तीर्थों की यात्रा की थी जिनका वर्णन तोर्थमाला-चैत्य परिपाटी संज्ञक रचनाओं में मिलता है। सं० १५११ को प्रशस्ति में जो हमारे ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में प्रकाशित है—में आपकी जीवनी की महत्वपूर्ण घटनाएँ निर्दिष्ट है। उज्जयन्त शिखर पर नरपाल संघपति ने "लक्ष्मोतिलक" नामक विहार बनाना प्रारंभ किया तब अम्बादेवी, श्रीदेवी आपके प्रत्यक्ष हई। सरिसा पार्श्वनाथ जिनालय में भी श्री शेष पद्मावती सह प्रत्यक्ष हआ था। मेवाड़ के नागद्रह के नवखण्डा पार्श्वनाथ चैत्य में श्री सरस्वती देवो आप पर प्रसन्न हुई थी। श्री जिनकुशलसूरि जी आदि देव भी आप पर प्रसन्न थे आपने पूर्व में राजगृह नगर उद्दविहारादि, उत्तर में नगरकोट्टादि पश्चिम में नागद्रहादि की राजसभाओं में वादी वृन्दों को परास्त कर विजय प्राप्त की थी। आपने सन्देहदोलावली वृत्ति, पृथ्वीचन्द्र चरित, पर्वरत्नावली, ऋषभस्तव, भावारिवारण वृत्ति एवं संस्कृत प्राकृत के सहस्रों स्तवनादि बनाए। अनेकों श्रावकों को संघपति बनाए और अनेक शिष्यों को पढ़ाकर विद्वान बनाए। ___ आपकी शिष्य परम्परा भी विशिष्ट महत्वपूर्ण थी। आपके प्रथम शिष्य मेघराज गणि कृत नगरकोट आदिनाथ हारबंध स्तोत्र विज्ञप्ति-त्रिवेणी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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