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महमूद गजनवी के आक्रमण काल से अब तक का इतिहास जो प्राप्य है उससे जो तथ्य सामने आते हैं उनके अनुसार सं० १००९ में गजनी द्वारा हिन्दु व जैन राजाओं को पेशावर में परास्त कर नगरकोट का किला अधिकार में कर लिया गया पर ३५ वर्ष बाद पहाड़ी आदिवासियों ने दिल्ली की सहायता से किले को पुनः हस्तगत कर लिया एवं कटोच वंशीय राजा का राज्य पुनः कायम हुआ । यहाँ की अखूट धन सम्पदा पर हमेशा मुसलमानों की नजर रही। सन् १३६० में कांगड़ा के राजा संसारचन्द्र पर फिरोजशाह तुगलक ने चढ़ाई कर अपनी आधीनता स्वीकार करवाली । संसारचन्द्र राजा के रूप में कायम रहा पर वहाँ के मन्दिरों की धन सम्पदा एक बार फिर लूटी गई । सर कनिंघम ने संसारचन्द्र की जगह रूपचन्द्र को इस समय राजा माना है जो कि भ्रांति मात्र है । तत्पश्चात् ई० स० १५५६ में मुगल बादशाह अकबर ने कांगड़ा किले को अपने अधिकार में ले लिया । उस समय के राजा धर्मचन्द्र ने दिल्ली बादशाह अकबर को कर देना मंजूर कर अपनी गद्दी कायम रक्खी। ई० सन् १७७४ में सिखों के प्रधान जयसिंह ने अपने छल-प्रपंच द्वारा किले को ले लिया व संसारचन्द्र (द्वितीय) को सन् १७८५ में सौंप दिया । सन् १८०५ से १८०९ तक यह क्षेत्र गोरखों की लूटपाट का केन्द्र बना रहा राजा रणजीतसिंह ने गोरखों को हराकर संसारचन्द्र सिंहासन पर आरूढ़ किया । ई० सन् १८२४ में संसारचन्द्र की मृत्यु के पश्चात् अनुरुद्धचन्द्र राज्य का अधिकारी हुआ । पर ३ / ४ वर्षों में हो संसार से विरक्त हो हरिद्वार चला गया व अपने पुत्र रणवीर को राज्य भार सौंप दिया । रणजीतसिंह ने आक्रमण कर कुछ भाग ले लिया व सन् १८२९ में किले पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार कांगड़ा में सोमवंशी कटोच गोत्रीय राजपूत राजाओं के राज्य का सूर्यास्त हो गया ।
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आखिर लाहौर के
द्वितीय को पुनः राज
कंगदक या कांगड़ा राज्य घनी आबादी वाला क्षेत्र था जहाँ ज्यादातर जैन धर्मावलम्बी थे । अनेक मन्दिर, धर्मस्थल हर गांव नगर में थे जो कि
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