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________________ नगरकोट-कांगड़ा महातीर्थ हिमालय की गोद में प्राकृतिक रमणीय वर्तमान हिमांचल प्रदेश में नगरकोट कांगड़ा श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय का अति प्राचीन व चमत्कारी तीर्थ है। नगर के दक्षिणवर्ती भाग में पर्वत की चोटी पर एक प्राचीन विशाल किला है जिसके दोनों ओर माझी एवं बाणगंगा नामक नदियाँ बहती हैं। यह नगर व आस-पास का प्रदेश किसी जमाने में जैन धर्माव. लम्बियों का गढ़ था। जन श्रुति के अनुसार यह नगर/तीर्थ महाभारत कालीन है। महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ते हुए अर्जुन से परास्त होने पर सोमवंशी कटोच गोत्रीय राजा सुशर्मचन्द्र जिसका मूल स्थान मुल्तान ( सिंघ ) था, ने इसे बसाया। राजा सुशर्मचन्द्र जैन धर्म में पूरी आस्था रखता था एवं अम्बिकादेवी इस वंश की कुल देवी के रूप में पूजित थी। भगवान नेमिनाथ के समकालीन राजा सुशर्मचन्द्र ने कई जैन मन्दिर बनवाये व अनेक रत्नों की प्रतिमाएं प्रतिष्ठित की थी। अम्बिका देवी की सहायता से किले पर श्री आदि जिन ऋषभदेव का मन्दिर बनवाया। प्रारम्भ में कांगड़ा का नाम राजा सुशर्मचन्द्र ने अपने नाम पर सुशर्मपुर रक्खा था। यह कांगड़ा जिला जालंघर या त्रिगत देश के अन्तर्गत था। महमूद गजनी के आक्रमण से पूर्व का इतिहास केवल काश्मीर के इतिहास को अवलोकन करने पर जो कुछ सामने आता है उससे यह सिद्ध होता है कि पूर्व के ६०० वर्ष अर्थात् ई० सन् ४७० से महमूद गजनवी तक यह त्रिगतं देश ही कहलाता था। सन् १००९ में गजनी ने आक्रमण किया व मन्दिरों आदि को नष्ट कर प्रचुर धन-सम्पदा ऊँटों पर लाद कर गजनी ले गया। समय परिवर्तन के साथ जालंधर/त्रिगत देश का भी बँटवारा होकर कुछ भाग हिमाचल प्रदेश में और कुछ पंजाब में चला गया। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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