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रास-सार अतिशय-निवास ऋषभ, नेमिनाथ और पार्श्व जिनेश्वर को नमन करके कवि खीमचंद संघपति का रास कहता है। भरतक्षेत्र में भट्टनयर में हंबीर नरेश्वर राज्य करता है। वहाँ मिथ्यात्व-नाशक लोढाकुल-मंडण माल्हउ, उसके पुत्र कालागर के अंगज लखमणसाह जैन धर्म में उत्साह वाला था। उसके देऊ और भीमड़ दो पुत्र हुए। देऊ के प्रथम पुत्र मालागर ने पूर्व के तीर्थों को नमन कर भव सफल किया। दूसरा ऊधरण और तीसरा खोखर पुण्यात्मा हुआ। मालागर की पत्नी मेलादे की कुक्षी से उत्पन्न खीमराज पृथ्वोतल प्रसिद्ध, विनय-विवेक-विचार-वान और देव-गुरु धर्म में रत तथा अमल आचार में अहर्निश निर्भय है। ऊधरण के उभय-पक्ष-निमल, धर्मात्मा धनागर और मूमचंद दो पुत्र हुए। खोखर का पुत्र भीख उ भी पवित्र भावना वाला था। भीमड़ का पुत्र झांझण, तत्पुत्र सलखण हुआ। खीमराज की गुणवान पत्नो खीमसिरी के १ पुण्यपाल २ श्रीपाल ३ पोपउ ४ जिणराज ५ पासचंद नामक पांच पुत्र हुए। मूमचंद का पुत्र माछर, भीखा का पुत्र रामचंद्र और सलखण के पुत्र छाजू व सोहिल थे। इस प्रकार खीमराज अपने परिवार युक्त सुशोभित है।
भगवान शांतिनाथ शिव सुख करने वाले और गोत्रजा देवी उपसर्गो का निवारण करनेवाली है। वडगच्छ में मुनिशेखर-सूरि- श्रीतिलकसूरिभद्रेश्वरसूरि, तत्पट्ट मुनीश्वरसूरि और उनके पट्टधर रत्नप्रभसूरि हैं । मुनीश्वर-सूरि के वचनों से खीमचंद जैन धर्म के आचारों का चारुतया पालन करता था। एक दिन खोमचंद ने सोचा शत्रुजय गिरनार की यात्रा करू जिससे निर्मल कुल कीर्ति का विस्तार हो।' उसने अपने परिजनों से मंत्रणा करके सद्गुरु को खमासमण पूर्वक हार्दिक भावना बतलाई और राय हंबीर की ससम्मान आज्ञा प्राप्त कर, सं० १४८७ मिती माघ शुक्ल ५ गुरुवार को देवालय में शान्तिनाथ भगवान को प्रतिष्ठापित कर सभीनगरों में संघपति खीमराज ने कुंकुम पत्रिकाएँ प्रसारित की। देवराज, साजन, संघपति. सहसराज, रणसोह, धोधू, हीर, देवल आदि अगणित लोगों के श्रेणिबद्ध
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