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________________ सिजवालों ने संघ प्रयाण किया। जिन भक्तिरत लोगों द्वारा प्रेक्षणीय रीति से संघ देहडहर पहुंचा। सरोवर के तट पर डेरा तंबू लगे। सरसा, जोगिणिपुर (दिल्ली), नरहड, सुनामगढ़, मुलतान, उच्च, सम्माणा, पेरोजाबाद हिसार आदि के श्रावक आ मिले। राउत आल्हू सम्मानित प्रयाण करके चले। तीर, तलवार, मुद्गरधारी अश्वारोही सुभट लोग संघ के साथ संचलित थे। थल समुद्र को सहज में उलंघन कर छापर आये, चंद्रप्रभ भगवान को वंदन कर, लड्डणु (लाडनूं) नगर में शान्तिनाथ प्रभु के दर्शन किये। फिर क्रमशः नागपुर ( नागौर ) पहुँचकर छ: जिनालयों में पूजा और महाध्वजारोप किया। मिती फाल्गुन शुक्ल ११ रविवार के दिन उल्लासपूर्ण वातावरण में सद्गुरु श्री मुनीश्वरसूरि ने खीमचंद के संघपति-तिलक किया। नाना प्रकार के वाजित्र वजे, विस्तार से संघपूजा हुई, याचकों को स्वर्ण, वस्त्र पौशाक से संतुष्ट किया। जोमणवार विशालरूप में होते थे। खोमसिरी विहार करते मुनियों की सार संभाल रखती थी। लक्खी और कपूरी दोनों बहिन-सुहासनियें खीमचंद को आशीष देती थी। भंडाणइ में बड़कुलदेवी की सेवा कर उसकी सेस प्रासाद सिरोधार्य कर फलवधि पार्श्वनाथ, रूण व आसोप में शांतिनाथ, उवएस (ओसियां) में वर्द्धमान स्वामी को नमस्कार किया। मंडोवर में पार्श्वनाथ, महेवइ में वीर प्रभु, राङद्रह में तथा साचउर में पहुँचकर वीर प्रभु की यात्रा की। वहाँ न्हवण, विलेपन और पूजन कर घृत-कलशों से अभिषेक आदि विविध उत्सव किए। रतनपुर में शांतिनाथ और जीराउल में पार्श्वनाथ भगवान के महाध्वजारोप कर खीमचंद संघपति अनेक दुखियों का कष्ट निवारण करते हुए आबू गिरि पर पहुँचे। वहाँ देवलवाड़उ में विमल दण्डनायक के विहार में ऋषभदेव, लूणग-वसही में नेमिनाथ और झाझण-विहार में पित्तलमय आदीश्वर भगवान की यात्रा की। मन्दिर के आगे विमल अश्वारूढ़ है तथा दोनों मंदिरों की जगती में देवकुलिकाओं की पूजा की, श्रीमाता, विठ्ठऋषि का निरीक्षण किया, डुंगर के विवर में अबुद देवी की अर्चा करके पूजा, ध्वजारोह और इन्द्रमहोत्सव आदि नाना उत्सव करके Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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