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पाउडिआलइ आरूहवि मा० जगपति जिणु निरखेइ । सु० खीमचंदु संघाहिव ए मा० दंड-प्रणाम करेइ ॥४॥ सु० चंदनि मृगमदि कुकुमिहिं मा० पूजइ जिणवरु भाइ। सु० कुसुममाल किसणागरिहिं मा० सोह हुअइ जिण काइ॥५॥ सु० राइणि रुखु वधारि करे मा० मनि धरि अति उच्छाहु । सु० करवि अवारिय देइ धज मा० मुकलावी जिणनाहु ॥६।। सु० मुकलावण मागण जणह मा० वरिसए सोवनधार । सु० वाई चंपेसरु अवयरिउ मा० सेवक देइ सिंगार ।।७।। सु० ललतासर-तडि आवियउ मा० दवडिउ दूसमकालु । सु० वलही वलि आवासियउ मा० संघाहिवु सु विसालु ।।८।। सु० घंधूकइ जिण वोरु थुणि मा० झंझूवाड़इ.... । सु०
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नागावाड़उ निरखियउ मा० निज कित्तिहिं धवलंतु । सु० छडिहि पयाणिहि संघपते मा० भट्टनयरि संपतु ॥१०॥ सु० मोतीय चउक पूरावियउ ए मा० घरि घरि वंदुरवाल । सु० पूनकलस हुउ सामुहउ मा० गीय झुणि वर माल ।।११।। सु० ढालइ चमर चतुर अवल मा० बाजइ वादित्र रंगि । सु० पहिराविउ संघाहिवइ मा० राइ हमीरि सुचंगि ।।१२।। सु० संघपूज वित्थरि करए मा० हरसिउ श्रावय लोउ । सु० जय जयकार समुच्छलिउ मा० लोढा-कुलिहु उजोउ ॥१३॥ सु० जा थिरु महियलि मेरु गिरे मा० गयणिहिं दिणयरु जाम । सु० खीमचंदु परियण सहिउ मा. थिरु हुउ महियलि ताम ।।१४।। सु० सासणदेवि सानिधु करए मा. हरउ दुरिउ वडि माइं । सु० खीमागरु थिरुधर जयउ मा० सउ नंदणस्यउं भाई ।।१५।। सु.
।। इति श्री संघपति खीमचंद रासः ॥छः।।
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