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________________ अन्न अवारी मंडि सुथिरु जसि जगतु भरते रास भास खेला सुचंग रंगिहिं नाचते मुकलावी जिणु सेस लेइ निज सीस घरते वलि जूनइगढि खीमचंदु चित्तिहि हरिसते ॥१३६ मंगलउरि पहु पासनाहु नवपल्लव पूजिउ देवापाट्टणि ससिपहु नमेवि मणि वंछी पूजिउ अंबिक कोडीनारि नमी दीविहि पहुपासा ऊनिहि न्हवियउ घृतकलोलु मंगल्ल - निवासो ॥१४॥ महुअइं ताराझइहि चीरु घोघिहिं नवखंडो जो कलिकालिहि कप्परुक्खु दुह-दलण पयंडो वालू कडि सिरि रिसहु बोरु नमि पालीताणइ हिव कवि सेत्रुज तित्थुराउ बहु बुद्धि वखाणइ ॥१५॥ ॥ घात ॥ लंघि दुग्गम लंघि दुग्मम गरुय सुविसाल गिरिमाल अवलोय वण-सरिय-कूअ-आराम-महु (?)-गढ उत्तंग अइ चंगतर लर अणेग जोइय सुदिढ मढ गिरि गरुअइ गिरनारि चड नेमिनाह पयमंति। खीमागरु संघपति इम निज भवु सफलु करंति तृतीय भाषा . गिरि कडणिहि नमि नेमि जिणु माल्हंतडे लेइ विश्रामु । सुणि. आगलि मइंगलि आरुहिय मा० मरुदेविय अमिराम ॥१॥ सु० अंचि संति अनु अजिय जिणु मा० अदबुद आदि प्रणामु । सु० कवडिलु रंगि वधावियउ मा० जसु अति घ गु गुणग्राम ॥२॥ सु० अणुपमसरि जलि कलस भरे मा० पहुतउ पउलि प्रवेसि । सु० नयण भरिय आणंद जले मा० तिलख तोरणह निवेसि ॥३।। सु० [ १३३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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