________________
पोपउ पुण्यवंतु जाणीजइ, जगि जिणराजु राय उवमीजइ। पासचंद चंदोपम छाजइ, बालपणइ गुण गरुअड़ि गाजइ ॥११॥ माच्छरु मूमचंदू मल्हारो, रामचद्र भीखा - तणु सारो। छाजू सोहिलु सलखण पुत्त, वन्नीजई गुख्यण - पय - भत्त ।।१२।। परियरिउ इम निज परिवारे, खीमराजु सोहइ संसारे । संतिनाहु सिरि सिव - सुहु-करए, तडि-गोत्रज - उवसग अवहरए ॥१३॥
॥ घात ॥ पुहवि पयडउ पुहवि पयडउ महिम मज्जाय मयरहरु लोढा - कुलिहिं मनिहाणु मालउ पतिद्धउ कालगरु तसु तणउ तयणु सुयणु लखमणु समिद्धउ देऊ संभवु सुकिय - निहि मालउ महियल - चंदु तसु नदणु सलहण लहइ खीमागरु साणंदु ॥१॥
प्रथम भाषा अह वड-गच्छि मुणिसेहरसूरे, असुहनामि जसु नासई दूरे। तासुपट्टि उज्जोय-करो। सिरि सिरितिलयसूरि गणहरो॥ गुरू गुण छत्तोसह भंडारो, पाव - पंक - परिहरण - परो॥१॥ अह भद्दे सरसूरि वखाणि, रंजिय जिणि जण आगम-वाणि । तसु पट्टिहिं पुहविहिं पयड़ो। सुगुरु मुगीसरसूरि विदीतउ जिणि रणि मयण - महाभड जीत उ । रत्नप्रभसरि पट्टि तसु ॥२॥ मुणिसरसूरि - वयणि जिण - धम्मु, खीमचंदु आयरइ सुरम्मु सयल लोय सोहइ सुपरो। अन्न-दिवसि चितवइ सुचित्ते वित्थारउ निम्मल-कुल-कित्ते, सेत्तुंजि ऊजिलि जिणि नमउ ॥३॥ वलि निज परियण-स्यउं करि मंतु, संघु सयलु पूछिय उ तुरंतु,
करि पसाउ सहु सावहउं । १२८ ]
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org