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संघपति लोढा खीमचंद रास (सं० १४८७ में भटनेर से गिरनार शत्र जय यात्रा) रिसहु नमी अतिसयह निवासो, नेमिनाहु जिणवरु अनु पासो ॥ दइ सरंति अति सुमति उल्हासो, भणिस्यउं संघपति खीमिग रासो॥१॥ जंबूदोवि भरहवर वरखित्ते, भट्टनयरि धण - रयण - पवित्ते। राजु करह हंबीर नरेसरु, अरियण - गण - तम - पूर - दिणेसरु ॥२॥ तत्थ अत्थि लौढा - कुल - मंडणु, वसुह - पयड मिच्छत्त - विहंडणु। माल्हउ महिमावंत वखाणि, तसु संभवु कालागरु जाणि ॥३॥ तसु अंगोभमु लखमण साहो, जसु जिणधम्मि अधिक उछाहो। लखमण सुत बे अनुपम सार, देऊ भीमड सुगुण - भंडार ॥४॥ अगणिय देऊ पुत्त पवित्त, सुहगुरु - चरण - कमल अणुरत्त । तीह पढमु भणिय मालागरु, पुव्व तित्थ नमि किउ भवु मणहरु ॥५॥ बीउ वनिउ तिमु ऊधरणु, खोखरु तीउ पुन्नआवरणु। मालागर - नंदणु धर धन्नु, मेलादे - उयरिहिं उवयन्नु ॥६॥ खोमराजु खोणियलि पसिद्धउ, विनइ विवेकि विचारि विसुद्धउ। देव - तत्ति गुरू - तत्ति विदित्तउ, अणुदिणु अमल अयारि अमित्तउ ॥७॥ उदयवंत ऊधरण तणूभव, बिहु पक्खिहिं निम्मल शशि अभिनव । पहिल उ धम्मधोरु धनागरु, वीजउ मूमचंदु मतिमनुहरु ॥८॥ खोखर - पुत्तु पवित्तु पयंडु, भोखउ भुयतलि भविअखंडो। भीमड़ - अगजु झांझणु धीरु, तासु तणउ सलखणु वड़ वीरो॥१॥ खीमराज घरणी घर लच्छे, खीमसिरी सोहइ गुण - सत्थे । पुत्त पवित्त पंच उपन्न, पुन्नपालु सिरिपालु रतन्न ॥१०॥
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