________________
करके मथुरापुरी सिद्धक्षेत्र की यात्रा द्वारा सात क्षेत्रों में द्रव्य व्यय कर जन्म सफल करने का मनोरथ कहा। वीघउ, और वइरो के प्रसन्नतापूर्वक समर्थन करने पर वड़गच्छ के मुनिशेखरसूरि-श्रीतिलकसूरि-भद्रेश्वरसूरिमुनीश्वरसूरि के पसाय से ऋषभदेव भगवान को देवालय में स्थापन कर गूजरी देवी के भर्तार नयणागर और पोपा के कुलशृंगार करमागर संघपति सहित मिती वैशाख वदि २ को संघ का प्रयाण हुआ। नाना वाजित्रों की ध्वनि से गगनमंडल गर्जने लगा, ब्राह्मण, भाट याचकरूपी दादुर-मोर शोर मचा रहे थे, एवं श्वेताम्बर मुनियों के मिस चतुर्दिक कीति-धवलित हो रही थी। संघ प्रथम प्रयाण में ही लद्दोहर आ गया। फिर नौहर. गौगासर के मार्ग से हिसार कोट पहुंचे, सरसा का बहुत-सा संघ यहाँ आ मिला। छः दर्शन के लोगों का पोषण कर स्थान-स्थान पर भक्ति करते हुए संघ सहित संघपति नयणागर बहादुरपुर आये। नागरिक लोगों ने बड़े समारोह से नगरप्रवेश कराया। खेमा-गूडर ताण कर संघ का पड़ाव हुआ। दिलावरखान ने नाना प्रकार से संघपति को सम्मानित किया। अनेक उत्सवों और शान्तिक पौष्टिक विधि सहित वाजे गाजे से सं० १४७९ मिती वैशाख शुक्ल १० भृगुवार के दिन शुभ मुहूर्त में चतुर्विध संघ सहित श्री मुनीश्वरसरिजी ने संघपति-तिलक किया। जेल्ही और चंभी आशीर्वाद देतों भामणा लेती थी। संघपति नयणा-गूजरी दंपति ने जीमनवार आदि करके सुयश प्राप्त किया। शुभ मुहूर्त में संघपति ने भोजा के नन्दन केल्हू, दूगड़ मीहागर के पुत्र देवराज, झांझण के वंशज अर्जुन के पुत्र सांगागर और वावेल गोत्र के सिक्खा के पुत्र सोनू-इन चारों वीर पुरुषों को संघकार्य को सुचारु संचालनार्थ 'महाधर' पद पर स्थापित किए। संघपति करमा के पुत्र कालागर, धाल्हा, के पुत्र मूलराज, सिंघराज के पुत्र सरवण के पुत्र संसारचंद्रको संघपति स्थापित किए। चारों दिशाओं से अपार संघ आकर मिला, जिनशासन का जयजयकार हुआ।
बहादुरपुर से प्रयाण कर मानवनइ ( मानव नदी) के तीर पर चलते हए विषम घाटी सहारपुर होता हुआ आनन्दपूर्वक उल्लंघन कर पहाड़िय नगर पहुंचे। वहाँ से दूसरी दिशा में चलकर 'कामइधगढ' और सहारपुर
[ ११९
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org