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होता हुआ आनन्दपूर्वक संघ मथुरापुरी पहुंचा । दूर से हो पवित्र जिनस्तूप के दर्शन हो गए, संघपति नयणा जो मोहिल का नन्दन और गूजरी देवी का भर्तार था— ने संघ का पड़ाव यमुना तट पर डाला । नदी की तरल तरंगों को देखकर संघपति प्रसन्न हो गया । सीहा मलिक उदार था, जिन प्रतिमाओं के दर्शन हुए। नारियल, फलादि भेंटकर कपूर और पुष्पों से अर्चा की। पाश्र्श्वनाथ-सुपार्श्वनाथ और महावीर प्रभु के न्हवण- विलेपनध्वजारोपणादि से पापों का नाश किया। सिद्धक्षेत्र में केवली भगवान जम्बूस्वामी के स्तूप की वन्दना की । भावभक्तिपूर्वक चलते हुए स्तूप प्रदक्षिणा देकर जन्म सफल किया और भव भव में तीन जगत के देवाधिदेव पार्श्व - सुपार्श्व वीरप्रभु की सेवा प्राप्त हो ऐसी भावना की ।
मथुरा से लौटकर निर्भय पंचानन सिंह की भांति संघसहित संघपति सहार नगर होते हुए पहाडिय नगर पहुंचे । विउहा पाश्वनाथ को बहुमान पूर्वक नमन कर पहाड़ी मार्ग उल्लंघनकर भुवहंड पार्श्वनाथ की वन्दना कर जहाँ जहाँ से संघ आया था, अपना अपना मार्ग पकड़ा । तेजारइपुर आकर नयणागर संघपति संघ सहित हिसारकोट के मार्ग से भटनेर पहुँचे ।
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