________________
संघपति-नयणागर-रास
( सं० १४७९ भटनेर से मथुरा यात्रा) अब तक अज्ञात १५वीं शताब्दी के तीन तीर्थयात्रा-संघों के रास यहाँ प्रकाशित किये जा रहे है। इन रासों की एक मात्र प्रति तत्कालीन लिखित हमारे संग्रह श्री अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में हैं। ये तोनों रास तीन तीर्थस्थानों के यात्राओं के विवरण सम्बन्धी है। ये तीनों संघ भिन्न भिन्न संघपतियों ने राजस्थानवर्ती भटनेर से निकाले थे।
संवत् १४७९ में भटनेर से मथुरा महातीर्थ का यात्री-संघ निकला था जिसके संधपति नाहरवंशीय नयणागर थे। इसमें भटनेर से मथुरा जाते व आते हुवे जो जो स्थान रास्ते में पड़े उनका अच्छा वर्णन है ।
पहले पाश्वनाथ और सुपार्श्वनाथ को भावपूर्वक प्रणाम करके फिर मनोवांछित देनेवाली कुलदेवी वांघुल को नमन कर कवि मथुरा तीर्थ के यात्रारंभ कराने वाले संघपति नयणागर का रास वर्णन करता है।
जंबूद्वीप-भरतक्षेत्र में भटनेर प्रसिद्ध है जहाँ बलवान हमीर राव राज्य करता है। वहां राजहंस की भाँति उभय-पक्ष-शुद्ध नाहर वंश में नागदेव साह हुए, जिनके १ खिमधर २ गोरिकु ३ फम्मण ४ कुलधर ५ कमलागर पांच पुत्र धर्मात्मा और देव-गुरु-भक्त थे। खिमधर के पुत्र के १ सूगागर २ गुज्जा ३ गुल्लागर ४ ठक्कुर थे। गुल्ला का पुत्र डालण और उसके १ मोहिल व २ धन्नागर पुत्र हुए। मोहिल की पत्नी जगसीही की कक्षी से उत्पन्न नयणागर कल में दीपक के सदृश हैं जिनकी पत्नी का नाम गूजरी है। धन्नागर की स्त्री साधारण की पुत्री और वयरा, हल्हा, रयणसीह परिवार की जननी है।
एक दिन नयणागर ने संघपति विक्का, वीघउ, गुन्ना के पुत्र वइरा, भुल्लण के पुत्र, सज्जन, धन्ना के पुत्र वल्हा, हल्ला आदि परिवार को एकत्र ११८ ]
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org