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इसके बाद भी अनेक कृतियां है, यहां केवल लेखन संवतोल्लेख का ही निर्देश किया गया है ।
खरतर गच्छ की रुद्रपल्लीय शाखा का भी पंजाब देश में अच्छा प्रभाव था। जयसाग रोपाध्याय की संघ यात्रा के पन्द्रह वर्ष पूर्व कांगड़ां पंच तीर्थी के नन्दवनपुर ( नादौन ) में अभयसूरि के शिष्य आचार्य प्रवर श्री वृद्ध मान सूरिजी ने १३५०० श्लोक परिमित 'आचार दिनकर' नामक विधिविधान का महाग्रन्थ सं० १४६८ की कार्त्तिक दीपावली के दिन रचकर पूर्ण किया था जिसमें उनके दादागुरु श्री जयानंदसूरि के शिष्य तेजकीत्ति ने सहाय्य किया था । उस समय नांदौन में अनन्तपाल राजा का राज्य था । इसकी ३२ श्लोकों की विस्तृत प्रशस्ति में से दो आवश्यक श्लोक उद्धत किये जाते हैंपुरे नन्दवनाख्येच श्री जालन्धर भूषणे
अनन्तपाल भूपस्य राज्ये कल्पद्रुमोपमे ||२७||
श्री मद्विक्रम भूपाला द्रष्टषण्मनु ( १४६८ ) संख्यके । वर्ष कार्तिक राकायां ग्रन्थोयं पूर्ति माययौ ॥ २८॥
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