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प्रति परिचय
यह गुटका १६।।४ १७॥ c. m. साइज का है जिसमें पत्रांक उल्लेख नहीं है । इस समय ७६ पत्र हैं, आदि-अंत के थोड़े पत्र लुप्त हैं । इसमें अनेक जैन श्रावकों के छंदादिका भी संग्रह है। सं० १५७० में भिन्न-भिन्न स्थानों में लिखा गया है। जिस कृति के पश्चात् लेखक नाम, संवत् स्थानादिका उल्लेख है वे अंश यहां उद्धत किये जा रहे हैं।
पत्र ६ ऊद कविकृत लक्ष्मीदास छंद सं० १५७० रचित है जिसके बाद श्रावक के २१ गुण लिखकर "लि० आसराजेन" पत्र १२ लिखितं आसराज वाजपाटके वा श्री श्री जिणचंद्र तत्सिक्ष: आसराजेन लिखितं वाजपाटक मभ्यंतरे लिखितमिति पत्र १८ सागरदत्त श्रेष्ठि रास गा० १४५ की पुष्पिका
॥ संवत् १५७० वर्षे चैत वदि ७ शुक्रवासरे। श्री बाजपाट क मभ्यन्तरे एषा पुस्तिका लिखिति मिति ॥ ठा० ऊदा तथा मु० आसराजेन उभौ मिलि पुस्तिका लिखिति ॥ यादृशं पुस्के दृष्टा। तादृशं लिखितं उभौ। यदि शुद्धमशुद्ध वा। उभौ दोषो न दीयते ॥१॥ लि० मु०॥ आसराजस्य लिखितं । ऊदा पठनाय ।। शुभंभवतु ॥॥ श्रीबाजपाटके नमित्तोगतः।।
पत्र १९॥ संवत् १५७० फागुण सुदि ४ दिने भौमवासरे । अश्वनि नक्षत्रे ॥ श्री नगरकोट तीर्थे श्री आदिनाथ अंबिका चैत्ये यात्रा कृता ॥ ऊदाकेन तोला सुतेन । लिखितं ॥१॥ जालामुखी प्रासादे ॥
पत्र १९ B छः आरा स्वरूप के पश्चात्-इति अरा प्रमाणं समाप्तं ॥ लिखितं आसचंद्रेण ऊदा पठनाय ।
पत्र २० A चार श्लोकों के बाद-इति सुप्रभात चतुष्कं ॥ लिखितं ऊदा स्व पठनाय ॥ शुभं ॥
पत्र २५ B नंदियन छंद ॥ शुभं ॥ लिखितं ॥ ठा० ऊदा सोहनदि मध्ये सं० १५७० वर्षे दुतोक भाद्रपद शुक्ल पक्षे ॥ १० तिथौ ॥ शुभमस्तु लेखक पाठकयो॥
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