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कङ्कण सुशोभित, विबुधजनों को मोहित करने वाली कराल काम का बोध देतो है।
७५. काम पीड़ा से पागल हस्तिनी रमणी नरेन्द्रचन्द्र के सेवन के समय
काम रस में सब कुछ भूली हुई सत्य ही सारे काम छोड़ कर अकेली
चली। ७६. श्रेष्ठ हस्तिनी सुन्दरी, रूप की निधान, मन में हरि का ध्यान-स्मरण
करके रसलब्ध बाला विशाल ललाट वाली अपने हाथ में माला लेकर यौवन मत्त, रस संसिक्त, पवित्र तेज से दीप्त त्रिगर्तेश्वर नृपति को अपने
मन में रति रंग के लिए एक चित्त हो कर स्मरण करती है। ७७. कमलदल को भाँति दीर्घ नयनी, विकसित पद्म-कमल की भाँति
प्रफुल्लित मुख वाली और रक्तोत्पल हाथ-पाँव वाली पद्मिनी रमणी
सेवा धर्म में दत्त-चित्त है। ७८. श्रेष्ठ पद्मिनी नारी गजगति-गामिनी, अपने भर्तार के स्मरण में रहती
है। अधर व ओष्ट जिसके लाल है, श्रेष्ठ भाव भक्ति और सुपवित्र रति सार ज्ञाता है। घन पीन पयोधरा, मनोहर भाव वाली, रूप में सुन्दर दीर्घ, पुण्य से परिपूर्ण, चम्पक वर्ण वाली ( पद्मिनी ने ) स्वामी को रंग विलास से प्रसन्न किया।
७१. संखिनी राग-भाव पूर्वक मनोहर गीत गाती है। चित्रणी विचित्र
सुन्दर गुण युक्त काव्य सुनातो है। हस्तिनी हाथों के हाव-भाव पूर्वक ताण्डव नृत्य करती है। पद्मिनी कमल मुखी-पीन पयोधरा कामित दुखों का खंडन करती है। चारों सन्नारियाँ रंग से कलित अपने गुण रूपी रस का विस्तार करती हुई अपने विज्ञान भाव पूर्वक राजा नरेन्द्र चन्द्र की सेवा करती है।
सुशर्मपुरीय नृपतियों के वर्णनात्मक छंद समाप्त हुए।
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