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६७ कवि जयानंद ( कहता है ) वह शुद्ध भाव संवासित था। भट्टदेव को
घोड़ों के दान से सम्मानित किया, उस त्रिगतश्वर राजा देवंगचन्द्र का
जयानन्द ने इन्द्र की भाँति वर्णन किया। ६८. दान में कणं जैसा, पराक्रम में अर्जुन जैसा, सत्य में राजा युधिष्ठिर
जैसा, देवों के चित्त को मोहित करने वाला सुशोभित है। मान में दुर्योधन की भाँति राजाओं से सेवित है। काव्यों में चित्त वाला राजा भोज की भाँति कविजनों से वणित है। गीत-कवित्त का रस ज्ञाता देवंगचन्द्र सहृदय भाव वाला है, उस संसारचन्द्र के सद्गुणी पुत्र का वर्णन करने में मन अति आनन्दित है।
६९. देवंगचन्द्र के पुत्र राजा नरेन्द्रचन्द्र का प्रमोद पूर्वक अपनी बुद्धि विस्तार
से वर्णन रूप कहूँगा। ७०. राजा नरेन्द्रचन्द्र की संखिनी, चित्रणी, हस्तिनी और पद्मिनी रूप परि
कलित स्त्रियाँ अपने-अपने योग्य भाव से सेवा करती हैं। ७१. संखिनी शंख के आभरण युक्त, श्रेष्ठ मोतियों के हार से नित्य भूषित
रहती है। विभ्रम-विनोद कलित नरेन्द्रचन्द्र नृप की प्रशंसा करती है । ७२. संखिनी श्रेष्ठ नारी, सुन्दर गुणों वाली सारी की भाँति नृत्य करती है।
उज्ज्वल रंग के बदन वाली, दीर्घनयनी, गज-गति-गामिनी, रंग में मदोन्मत्त, विषयासक्त, सुन्दर सुदृप्त भाव से भाव पूर्वक ताली देते हुए
गाती है। अत्यन्त रंग पूर्वक त्रिगर्तेश्वर की वह सेवा करती है। ७३. चित्रणी विचित्र चित्र कम में प्रवीण, रूप में अनर्गल, कामासक्त, हाथ
में वीणा लेकर गायन में लुब्ध धर्म कार्य में निश्चल और सुस्थित है। ७४. श्रेष्ठ चित्रणी कामिनी तरुण वय वाली स्वामिनी, विविध भङ्गिमाओं
के साथ नमन करती है। हंस गति-गामिनी हाथ में पल्लव को धारण कर कामुक अंगों से शल्य युक्त करती है। मकरध्वज वश भूली हुई, गुण गणों से पकी हुई मल्लिका लता की भाँति सुकुमार है। हाथों में
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