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५२. अपनी कीर्ति के विस्तार से सारे जालन्धर मण्डल को अंजित करके
नारायण के स्मरण और शुद्ध ध्यान से स्वर्ग में इन्द्र का अर्धासन प्राप्त किया।
४३. श्री रूपचन्द्र नरेन्द्र का पुत्र सिंगारचन्द्र उसके पाट पर बैठा । राजमार्ग
में प्रविष्ठ हो वह महेन्द्र की भाँति सुशोभित हुआ। अत्यन्त दुष्ट शत्रओं को रणक्षेत्र में जीतकर प्रसिद्ध हुआ। शिव ध्यान में रक्त गुणों में मतवाला, निर्मल चित्तवाला, सिद्ध प्रमाणित हुआ।
५४. उसका पुत्र श्री मेघचन्द्र नरेन्द्र विप्रभक्त, शत्रु सेना का क्षय करने
वाला, दुष्ट म्लेच्छों के लिए सुरेन्द्र की भाँति भयकारी, नागरिक और याचक लोगों का पालन कर धर्म के रंग में रक्त था। शिवपुरी के नायक शंकरदेव की पूजा करके रण में सत्वशाली हुआ।
५५. अपनी कुलदेवी माता अम्बिका स्वामिनी के ध्यान में लगा हुआ, पर
सैन्य को अत्यन्त महत्तर (विशाल ) देखकर भी शत्रु से लेश मात्र भी क्षब्ध नहीं हुआ। श्री मेघचन्द्र नरेन्द्र का पुत्र कर्मचन्द्र नरेश्वर है जो दान मान द्वारा मनोरंजक है और जिसका कवीश्वर नित्य वर्णन करते हैं।
५६. रूप में सुन्दर, तेज का मन्दिर, बल बुद्धि का समुद्र, निज सत्व तत्त्व
में विचित्र चित्तवाला जिसके मनोहर मित्र हैं, उदार देवी का कान्त करमचंद मन को हरण करनेवाला कलाधर है। कांगड़ा का स्वामी याचक जनों का सुखकारी नाथ है, कामना पूर्ण करता है।
५७. श्री करमचन्द्र का पुक्र सच्चरित्र संसारचन्द्र राजा मनुष्य जन्म लेकर
अपने उल्लसित प्रताप से विख्यात है।
५८, म्लेच्छ नरेन्द्र पिरोजशाह बादशाह सैन्य एकत्र कर कांगड़ा पहुंच कर
गढ को घेर कर कहने लगा-मेरे सामने हिन्दू कौन टिक सकता है ?
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