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देव - देवियों से युक्त कंगड़गढ निर्मल भासित होता है । त्रिगर्तेश्वर सुशमं राजा ने अपने सत्व गुण से सब को स्थापित किया है ।
११. कंगड़ कोट के स्वामी नृपति नरेन्द्रचन्द्र के प्रमोद के हेतु मूर्ख होते हुए भी सुपद्य बन्ध कुशल काव्य कहता हू ।
१२. अपने गुरु महाराज के चरण कमलों में भक्ति पूर्वक नमस्कार करके त्रिगर्त्तेश्वर राजाओं का कुल विस्तार कहूँगा ।
१३. पूर्व काल में राजा भूमिचन्द्र नरेन्द्र हुआ, जो देवी से जन्मा हुआ मानो सुरेन्द्र हो हो । उत्कृष्ट दानवों के लिए कृतान्त था । वह चन्द्रोत्पन्न सर्व सुखों का कन्द था ।
१४. महाराजा भूमिचन्द्र के स्वर्ग प्राप्त होने पर उसके पट्ट पर सुशोभित सोमचन्द्र हुआ । राज करके समस्त शत्रु वर्ग को जीत कर पवित्र भूमि को मुक्ति क्षेत्र बना दिया ।
१५. सोमचन्द्र का पुत्र दुःखों को दूर करने वाला, शरणागत रक्षक, सुविचक्षण, दानवीर, रणधीर, कलाधर असमर्क पृथ्वी पर शक्रेन्द्र जैसा नरेश्वर हुआ ।
१६. उसका पुत्र अजगर्त्तं सरस्वती का भक्त, सरस सुकवि, तत्त्वार्थ में अनुरक्त प्रबल शत्रु समूह के विस्तार को नाश करने वाला, सुकृत कर्मों के द्वारा अपने राज्य का विस्तारक था ।
१७. अजगर्त्तचन्द्र का पुत्र सुप्रसिद्ध, समस्त सुभटों का परिवार बढाने वाला, विमल मति वाला सुशर्म राजा हुआ । वह कामदेव के सदृश रुपवान् और पृथ्वी खण्ड का मण्डन देव तुल्य था ।
१८. वह सबल सैन्य लेकर अति कुटिल कोपरस भाव संदृप्त, विषम युद्ध कला की लीला से भूषित सुभट्टों के विविध शब्द से रुद्र के समान अट्टहास करता हुआ कुरुक्षेत्र को पहुँचा ।
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