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१९. श्रेष्ठ युद्ध कला में सुभटों से संपृक्त विमल कुरुक्षेत्र में पार्थ अर्जुन के
साथ नाना प्रकार से भिड़कर स्वर्ग को प्राप्त हुआ और वहाँ ललनाओं
के विविध विलास में संरक्त हुआ। २०. इक्कीस हजार आठ सौ सत्तर रथ, उतने ही हाथियों के गर्जारव के साथ
भुजबल सनद्ध सुभट थे। पेंसठ हजार छः सौ दश अश्वारोही, एक लाख नौ हजार तीन सौ साठ पदाति वीरों का चमचमाहट करता अक्षौहिणी सैन्यदल एकत्र कर सुशर्म राजा ने समराङ्गण में अर्जुन
के साथ अच्छी तरह युद्ध किया। २१. सुशर्मचन्द्र का पुत्र शूरशर्म संग्राम और ललनाओं में सुरक्त त्रिगर्तेश्वर
राजा भवन में स्तुत्यमान हुआ। २२. उसके बाद हरिचंद राजा हरिश्चन्द्र नरेश्वर की भांति सत्वशील था। ... वह घोड़ों सहित दान वितरण कार्य में महीमण्डल में विख्यात हुआ। २३. हरिचन्द राजा का पुत्र गुप्तिचन्द्र नप विपुल बलवान हुआ। वह
सोम का वंशज गुप्तिचन्द्र लक्ष्मी और चन्द्रमा की भाँति जनता को
प्रमोदकारी हुआ। २४. रूप में लक्ष्मीपुत्र प्रद्य म्न-कामदेव को भी पराजित करने वाला ईशान
चन्द्र राजा हुआ। उसका पुत्र वजड़चन्द्र राजा अपने सद्गुणों से
सुप्रसिद्ध हुआ। २५. वजड़चन्द्र का पुत्र नाहड़चंद धर्म-धुरा का उद्धार करने वाला, म्लेच्छ
सेन्यों का क्षय करने वाला भुवन में पूज्य हुआ। २६. सोमवंशी पृथ्वीपति नाहड़ की कामनाएं अम्बिका पूर्ण करती थी।
वह म्लेच्छ मीर को मारने में यमराज जैसा था, अपने देश में हर्ष
पूर्वक राज्य किया करता था। २७. अन्धकार नाशक सूयं सदृश दैदीप्यमान सत्यपुर महावीर के पास ही
नगर-नगर में कूप, सरोवर, वापी और भवन अति सुन्दर बनवाये ।
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