SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपयुक्त इतिहासकारों ने सन् १४६५ से १४८० तक माना है जो विक्रम संवत् १५२२ से १५३७ होता है परन्तु जयसागरोपाध्याय संघ सहित वि. सं० १४८४ ज्येष्ठ शुक्ल ५ को नगरकोट यात्रा करने और राजा साहब से साक्षात्कार करने का विशद वर्णन 'विज्ञसि त्रिवेणी' और चत्य परिपाटी स्तवनादि में अकाट्य रूप से पाया जाता है अतः इतिहासकारों की सारी कल्पनाएँ मिथ्या प्रमाणित हो जाती हैं। राजा नरेन्द्रचन्द्र ने उपाध्यायजी को संघ सहित स्वागत पूर्वक अपने महल में बुलाया, उपदेश सुना, अपने पूर्वजों के समय से स्थापित अपने महलों में आदिनाथ प्रतिमा व देवागार स्थित रत्नमय जिन बिम्बों के दर्शन कराये। काश्मीरी पण्डित से शास्त्रार्थ भी हुआ-इन सब बातों को जानने के लिए विज्ञप्ति-त्रिवेणी ग्रन्थ देखना चाहिए। राजा नरेन्द्रचन्द्र के पश्चात् कांगड़ा की राज वंशावली जानने के लिए हमारे पास इतिहास ग्रन्थों के भ्रान्त समय वाली परम्परा के अतिरिक्त उन्हें परीक्षार्थ कसौटो स्वरूप शिलालेख, यात्रा विवरण, ग्रन्थ प्रशस्ति आदि साधनों की अनुपलब्धि में यथावत् लिखा जा रहा है। राजा नरेन्द्रचन्दू और इतिहासकारों के समय में लगभग १०० वर्ष का अन्तर चला आ रहा है। राजा कनिंघम हचीसन सुवीरचन्द्र सन् १४८० ई० १४८० ई० प्रयागचन्द्र १४९० छन्द के परिशिष्ट में सूची में भी नाम नहीं है रामचन्द्र १५१० १५१० धरमचन्द्र १५२८ १५२८ सन् १५५६ में अकबर ने कांगड़ा जीतकर अपने अधीन कर लिया माणिक्यचन्द्र १५६३ १५६३ १५७० १५७० कवि कनकसोम ने सं० १६३४ (ई० सन् १५७७ में यात्रा की अतः सन् १५७० राज्यारोहण असंभव नहीं। [ ८९ जयचन्द्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy