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________________ लिया। संसारचन्द्र ने उसे युद्ध में बुरी तरह हरा दिया। उसने घोड़े आदि भेंट कर संन्धि कर ली और प्रेम सम्पादन कर रातोरात कांगड़ा देश छोड़ कर चला गया। पिरोज का पुत्र मुहम्मद शाह संग्राम से भग कर दिन रात चल कर संसारचन्द्र के शरणागत हुआ। राजा ने उसे संरक्षण देकर पैत्रिक कीत्ति को रक्षा की। प्रयाग त्रिवेणी संगम पर माघ स्नान किया, वाराणसी में विश्वनाथ धाम स्पर्श कर पाप मल धोया। गयाजी में पिण्डदान कर बुद्ध भगवान को नमस्कार किया ( छंद ६२ तक )। छंद में संसारचन्द (प्रथम) का पिरोजशाह के समकालीन होना सिद्ध है जब कि इतिहासकारों ने उस समय (सन् १३६० राज्यरोहण तिथि ) को रूपचन्द के साथ जोड़ दिया है और संसारचन्द्र का समय सन् १४३५ राज्यारोहण काल लिखा है, किन्तु मुनिभद्र कृत नाहर वीकमसिंह रास के अनुसार उस समय बड़गच्छाचार्य भद्रेश्वरसूरि, भटनेर का राजा दुलचीराय दुलाचन्द था और कांगड़ा में संघ ने महाराजा संसारचन्द से भेंट की है अतः इन तीनों का समय समकालीन प्रमाणित है। आचार्य भद्रेश्वरसूरि का संवत् १४३६ ( सन् १३७९ ) का अभिलेख मिलता है। दुलचीराय से तैमूर ने सन् १३९१ (वि० सं० १४४८) में भटनेर छीन लिया था अतः सं० १४४८ से पूर्व संघ यात्रा का समय निश्चित है क्योंकि संसारचन्द्र ने संघपति को सम्मानित किया था अतः संसारचन्द्र का राज्यकाल स्पष्टतः गलत है। और कनिंघम साहब का इसे मोहम्मद सईद के समकालीन मानना भी भ्रान्ति पूर्ण ठहरता है। राजा संसारचन्द्र का पुत्र देवगचन्द्र बड़ा दानी, शूरवीर और सद्गुणी था ( छंद ६३ से ६८)। कवि जयानंद ने तदनन्तर इसके पुत्र नरेन्द्रचन्द्र के वर्णन से पूर्व पद्याङ्क ६७ में अपना नाम दो वार दिया है। इसके बाद पद्याङ्क ७९ अर्थात् शेष तक नरेन्द्रचन्द्र के गुण और नायिका भेदादिक वर्णन है। महाराज देवंगचन्द्र का नाम अंग्रेजी उच्चारण शैली की कृपा से देवनाग और देव नग्गावंद्र भी उल्लेख हुआ है। राजा नरेन्द्रचन्द्र का समय ८८ ] Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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