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उल्लेख किया है जो कि सं० १४९७ की चैत्य परिपाटी में राजा सुशर्म द्वारा हिमगिरि से प्रतिमा लाने व एक रात्रि में मन्दिर निर्माण करने की बात स्मृति दोष से रूपचन्द्र महाराजा के लिए लिखी गई प्रतीत होती है। सारे राजा लोग उसके पायनामी थे वह ज्वालामुखी का ध्यान करता था। सारे जालंधर मण्डल में कीति फैलाकर राजा रूपचंद्र स्वर्गवासी हुआ।
इतिहासकारों ने मति कल्पना से प्रत्येक राजा का राज्यकाल १५ वर्ष मानते हुए भ्रान्त परम्परा चला कर राजा रूपचंद्र की राज्यारोहण तिथि १३६० A. D. लिखा है और उसे फिरोज तुगलक के समकालीन माना है। किन्तु छंद के अनुसार राजा रूपचंद की पांचवीं पीढ़ी में हुए महाराजा संसारचंद्र ( प्रथम ) के समय की वह घटना है। राजा रूपचंद्र के पश्चात् उसका पुत्र (२७) सिंगारचंद्र सिंहासनारूढ़ हुआ। कनिधम और हचीसन ने इसका भ्रान्त राज्यकाल सन् १३७५-९० लिखा है। वह शिवध्यानरत
और शूरवीर शत्र विजेता था। सिंगारचद का पुत्र (२८) राजा मेघचद्र विप्र भक्त शत्रु सेना का क्षय करने वाला, म्लेच्छों के लिए भयकारी, दानवीर और शंकर का पूजक था। नृपति वर्णन छंद के बाद को सूची में (२६) रूपचंद के पश्चात् (२७) त्रैलोक्यचंद (२८) सिंगारचन्द्र और (२९) अवतारचंद लिखा है। छंद में त्रैलोक्यचन्द्र और अवतारचन्द्र का उल्लेख नहीं है। सूची के अनुसार मेघचंद्र क्रमांक ३० में आ जाते हैं।
राजा मेघचन्द्र का पुत्र कर्मचंद अपनी कुलदेवी अम्बिका स्वामिनी का ध्याता और विशाल शत्रुसेना से भी अक्षुब्ध शूरवीर था। यह सुन्दर तेजश्वी बुद्धिशाली, दानी, कलाप्रेमी और रानी उदारदेवी का कान्त था। कनिंघम ने दोनों का राज्यारोहण सन् १४०५ और १४२० बतलाया है और हचीसन की शासक सूची में कर्मचन्द्र के पूर्व उसके ज्येष्ठ भ्राता हरीचंद (प्रथम ) का नाम राज्य काल १४०५-१४१५ ई० एवं कर्मचन्द्र का सन् १४१५ से सन् १४३० उल्लेख किया है पर छंद में इसका कोई नामोल्लेख तक नहीं है और न सूची में ही नाम है।
श्री करमचंद्र का पुत्र राजा संसारचंद बड़ा प्रतापी हुआ (छंद ५७ ) म्लेच्छ नरेन्द्र पिरोजशाह ने सैन्य दल के साथ आकर कांगड़ा दुर्ग को घेर
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