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विधीचंद १५८५, १५८५ त्रिलोकचन्द्र १६१० १६०५ छन्द के परिशिष्ट के नाम यहाँ शेष।
जहाँगीर के विरुद्ध विद्रोह किया। हरीचंद (द्वितीय) १६३० १६१२ चन्द्रभानचंद १६५० १७२७-४९ ( निःसन्तान ) धरमचंद के लघु
भ्राता कल्याणचन्द्र का वंशज था। औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह किया।
मानकोट के घेरे में मारा गया। विजयरामचन्द्र १६७० १६६०-८७ उदयरामचन्द्र
१६८७ विजयरामचन्द्र का भाई था। भीमचंद १६८७ आलमचंद १६९७ हमीरचन्द्र
१७०० अभयचन्द्र १७४७ १७४७ (निःसन्तान) गमीरचन्द
१७५० यह हमीरचंद का छोटा भाई था। घमण्डचंद १७६१ १७५१ यह गमीरचंद के लघु भ्राता पुत्र था। तेगचंद १७७३ १७७४ संसारचंद १७७५ १७७६ सन् १७८५ में कांगड़ा किला पाया, (द्वितीय)
सन् १८२४ में मृत्यु हुई अनिरुद्धचन्द १८२३
चार वर्ष बाद राज्य छोड़कर हरिद्वार
चला गया। रणवीर १८२९ १८३२-४७ सन् १८४५ में सिक्ख युद्ध के समय
कांगड़ा अंग्रेजों ने ले लिया पर किले
पर बाद में अधिकार हुआ। मुरुतचन्द्र
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