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१४ गोरीचंद (गोरचंद) हुआ जो ईशानदेव का भक्त और विरक्त चित्त वाला था। छंद में इसके बाद १५ इन्द्रचन्द्र का नाम है जो सूची में नहीं है। १६ कल्याणचंद्र १७ कुलचंद्र १८ रामचंद्र हुए। ये दोनों नाम भी सूची में नहीं है। इनके पश्चात् १९ आसचंद हुए। सूची में १७ साल्हादचंद का भी नाम इसके बाद है अतः २० वसुधाचन्द्र का नाम दोनों में होने से यहां दो क्रमाङ्क में अंतर आता है। उसके बाद सूची में श्रीचंद का नाम है और छंद में नहीं होने से एक संख्या का अन्तर रहता है। वसुधाचंद्र बड़ा बुद्धिशाली और शूरवीर था। वसुधाचन्द्र नरेन्द्र षट् दर्शन भक्त और जिनशाला का निर्मापक था, इसके विल्लदेवो नामक प्रिया थी। पंचपुर' के स्वामी वल्ह को जीतकर आदित्य के गृह ( मंदिर ) से स्वर्णमय छत्र लाकर उसे ज्वालामुखी देवी के उत्तंग भवन में आरोपित किया। वसुधाचन्द्र के पुत्र का नाम २१ उदयचन्द्र था ।
वंशावली के उपयुक्त राजाओं के सम्बन्ध में अन्य प्रमाणों के अभाव में अधिक प्रकाश नहीं डाला जा सकता। चीनी यात्री हआनसांग ने उटीटो ( Utito ) का वर्णन किया है। कनिंघम साहब इसे पौराणिक वंशावली का 'आदिम' (Adima) मानते हैं। छंद में भी पौराणिक वंशावली के सैकड़ों नाम छोड़कर वर्णन किया गया है। यूनानी इतिहासकार टालमी ने सिकंदर को भारत यात्रा के समय नदी तट के राजा की चर्चा की है। कल्हण कृत राजतरंगिणी में तथा हुआनसांग जो सन् ६३५ ई० में जालंधर और त्रिगर्त का उल्लेख किया है। वह जलंधर के राजा के पास दो महीना ठहरा था। उसने जालंधर राज्य की लंबाई १६७ मील (पूर्व-पश्चिम) और चौड़ाई १३३ मील (उत्तर-दक्षिण) लिखी है। अतः उस समय राज्यसीमा पर्याप्त विस्तृत थी। १. यह स्थान चण्डीगढ के निकटवर्ती आजकल पंजौर कहलाता है। यहाँ ९वीं
१०वीं शती की जैन प्रतिमाएं खुदाई से प्राप्त हुई है। २०० वर्ष पूर्व यहाँ बावन जिनालय था। बड़गच्छ के कवि मालदेव ने यहाँ चातुर्मास किया था। यहाँ से शिमला के मार्ग में एक मुगलकालीन सातमञ्जिला दर्शनीय बाग है जिसे हरियाणा सरकार ने बहुत ही सुन्दर बना दिया है।
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