SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजतरंगिणी में राजा पृथ्वीचन्द्र का नाम आया है जिसने काश्मीर के शंकरवर्मन ( ई० सन् ८८३ - ९०३ ) के पास अपने लघु भ्राता भुवनचन्द्र को जमिन रखा था। आगे चलकर इसी राजतरंगिणी में इद्रचंद्र का नाम आता है जिसने (सन् १०३०-४० ) काश्मीर के राजा अनंतदेव को अपनी पुत्रियाँ व्याही थो । लगभग ३० ई० सन् १००९ में महमूद गजनी अपार धन राशि के लोभ में विशाल सेना के साथ कांगड़ा की इस दुर्गम भूमि में आया और उसने श्री व्रजेश्वरी देवी के मन्दिर को भूमिसात् करके यहाँ का सारा धन ले गया और अपनी शक्तिशाली सेना को छोड़ गया । उस समय कांगड़ा का राजा जगदीशचन्द्र था जो इस वंश के आदि पुरुष भूमिचन्द्र की ४३६वीं पीढी में था । वर्ष पश्चात् सन् १०४३ में कटौच राजा ने दिल्ली के तत्कालीन शासक पर्णभोज की सहायता से चार मास पर्यन्त युद्ध करके पुनः अधिकार किया । श्री जोनराज की राजतरंगिणी में कई बार सुशमंपुर के राजा मल्लचंद्र की चर्चा की हैं जिसने अपने शत्रुओं के द्वारा देश से निष्कासित होकर काश्मीर नरेश जयसिंह की शरण प्राप्त की थी। यह घटना सन् १९२८ तथा ११४० के बीच की है । फिर शहाबुद्दीन के काश्मीर आक्रमण के समय भयभीत होकर सुशर्मपुर के राजा का अपने किले को छोड़कर देवी की छत्र छाया में चले जाने का उल्लेख किया है । सन् १०७० के लगभग कटौच राजाओं के इलाके दो भागों में बँट गये । राजा पद्मचन्द्र के लघुभ्राता, पुत्र चन्द्र ने एक अलग राज्य की नींव डाली, जो 'जसवन' आज होशियारपुर जिले में है । महमूद के सचिव उतबी ने तथा फरिश्ता ने इसका नाम 'भीमकोट' उल्लेख किया है। अलबेरुनी के समय इसका नाम नगरकोट ही था । राजा उदयचंद्र का पुत्र २२ जयसिंहचन्द्र हुआ जिसका वर्णन छंद की ४३वीं गाथा में है । ४४वें पद्य में उसके पुत्र २३ जयचन्द्र ( जयतचंद्र ) का २. कांगड़ा में राजा इन्द्रचंद्र का बनवाया हुआ इन्द्रेश्वर जैन मन्दिर जो ११वीं शती में निर्मित्त है, शिवलिंग स्थापित कर शिवालय बना दिया गया है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only [ ८३ www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy