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[ समयसुन्दर रासत्रय
दूहा वनपालक वद्धामणी, दीधी आणी दोड़ि। वन मइं पधास्या वीर जिण, बोलइ बेकर जोड़ि ॥१॥ हीयडइ श्रेणिक हरखीयउ, मेघ आगम जिम मोर । वसंत आगम जिम वनसपती, चाहइ चंद चकोर ॥२॥ मन वंछित वद्धामणी, दीधउ तेहनइ मान' । स्नान मज्जन श्रेणिक करी, पहिरइ वस्त्र प्रधान ॥ ३ ॥ हरख घणइ हाथी चड्यउ, सखर धस्यउ छत्र सीस । चिहुं पासे चामर ढुलइ, आपइ भट्ट आसीस ।। ४ ॥ हय गय रथ पायक हुआ, सहु राजा नइ साथि ।। विधि सुचाल्यउ वांदिवा, अपणी ले सहु आथि ।।५।।
[सर्वगाथा २२ ढाल (२) हुंवारीलाल, नी मारग मइ मुनिवर मिल्या हुँ वारी लाल,
रह्यउ काउसगि रिषिराय रे । हुं. एक पगइ ऊभउ रह्यउ हुँ०, पग ऊपरि धरी पाय रे । हुं ॥१॥ हुं बलिहारी जाउं साधनी हुं०, ए मोटउ अणगार रे । हुं० आप तरइ अउर तारवइ हुँ, नाम थकी निस्तार रे । हुं॥२॥ सूरिज साहमी नजरि धरी हुँ०, बे ऊँची धरी बांह रे । हुं० सीत तावड़ परीसा सहइ हुँ०, मोह नहीं मन माह रे । हुँ० ॥३॥
१ दान
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