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वल्कलचीरी चौपई]
[२७ इण नगरी थयउ नंद मणियार, तिण पोसउ कीधउ तिणवार । तरसे मरइ' राति तिणइ, जल बावड़ी करावी जिणइ ॥३॥ ददुर नाम थयउ ते देव, श्रीबधमान नी करतउ सेव । सोनहिआ साढी कोडि बार, कइवन्नइ खाधी इक वार ॥४॥ जंबू सामि थयउ जिण ठामि, आठ अंतेउरि तजि अभिराम । कनक तणी निन्नाणूं कोडि, संयम लीधउ सहु रिधि छोडि ॥५॥ इहां गणधर गया मुगति इग्यार, गौतम प्रमुख बड़ा अणगार । मुगति गया मेतारिज जती, सहिनाणे एहवे सोभती ॥६॥ राज करइ तिहां श्रेणिक राय, क्षायिकसमक्ति रउ कहिवाय । मंत्री जेहनइ अभयकुमार, च्यारि बुद्धि धरइ सुविचार ॥७॥ न्याय तपास करइ नितमेव, सारइ श्री महावीर नी सेव । दीवाण केहनइ न करइ दुखी, राजा राज प्रजा सहु सुखी ॥८॥ इण अवसरि श्री अरिहंतदेव, सुर नर किन्नर सारइ सेव । गुणसिलइ चैत्य गुणे करि भख्या, श्री बधमान सामी समोसस्या।।। गणधर इग्यारह अणगार, चउद सहस साथि सुविचार । साधवी सहस छत्तीस सुजाण, प्रातीहारज अष्ट प्रमाण ॥१०॥ मांड्यउ समवसरण मंडाण, भगवंत बइठा जाणे भाण । इन्द्र तिहां चउसठि आवीया, प्रभु देखी आणंद पामीया ॥११॥ वलकलचीरी नी चउपई, पहली ढाल ए पूरी थई। समयसुदर कहइ सुणिज्यो सहू, बोलिस बात हुँ आगइ बहू ॥१२॥
[ सर्वगाथा १७] (१ मरतइ
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