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कविवर समयसुन्दरोपाध्याय कृत श्री वल्कलचीरी चउपई
दहा प्रणमुपारसनाथ नइ, प्रणमु सहगुरु पाय । समरू' माता सरसती, सहु करज्यो सुपसाय ॥१॥ वलकलचीरी केवली, मोटउ साध महंत । चूंप करी कहुं चउपई, सांभलज्यो सहु संत ॥२॥ गुण गिरुआ ना गावता, वलि साधना विशेष । भव मांहे भमियइ नहीं, लहियइ सुख अलेख ॥३॥ मइ संयम लीधउ किमइ, पणि न पलइ करु केम । पाप घणा पोतइ सही, अटकल कीजइ एम ॥४॥ तउ पणि भव तरिवा भणी, करिवउ कोइ उपाय । वलकलचीरी वरणवू, जिम मुझ पातक जाय ॥५॥
ढाल (१) चउपई नी, राग----रामगिरी जंबूदीप आपे छां जिहां, भरतक्षेत्र भलं ते तिहां । मगध देश अति रलियामणउ, सर्व देश मइ सोहामणउ ॥१॥ राजगृह नगरी ऋद्धि भरी, चउद चउमासा महावीर करी। सालिभद्र नइ धन्नउ साह, इण नगरी पाम्यउ उच्छाह ॥२॥
१-सरसति सामिणी २ साधां तणा
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