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[समयसुन्दर रासत्रय मा बाप गरढा माहरा, मई मुक्या मतिहीण । तुरत जाउ हिव हुं तिहां, लागि रहुं पगि लीण ।।६।।
[सर्व गाथा २०२ ] ढाल (१०) तिमरी पासइ वडलं गाम, एहनी ढाल, वाहण नी, सिंहलसिंह मांगी हिव सीख, वर जीवे तुकोड़ि वरीष । आसीस लेइ नइ उड्यउ आकास, बइसि खटोलड़ि बहुत
उलास ॥१॥ चिहुँ दिसि बइठी कुमरी च्यार, कुमर बइठउ विचमई सुखकार। गई रे खटोलड़ि आपणइ गाम, कुमर तणा फल्या वंछित काम।।२॥ माता पिता नइ जाइ मिलियउ, दुक्ख वियोग तणउ दुर टलियउ। हीयंडउ मात पिता नउ हरख्यउ, नयणे आपणउ नंदण निरख्यउ॥३॥ च्यार बहू अति चतुर सुनाम, प्रेम सुसासू नइ करइ प्रणाम । सासू बहू नई द्यइं आसीस, जस पुत्रवती हुइज्यो सुजगीस ॥४॥ आपणउ राजकुमर नई आप्यउ, थिर राजा आपणइं पाटि थाप्यउ। राजा योग मारग लियउ रंग, अद्भुत मुगति मारग नउ भंग॥५॥ रूड़ी परि सिंहलसुत राज, करइ अनोपम धरम ना काज । पंडित गुरु पासइ प्रतिबुद्ध, श्रावक ना व्रत पालइ सुद्ध ।।६।। खिण खिण राजा कंथा खंखरइ, झाझी द्रव्य नी कोड़ि झांझरइ । पृथवी ऊरण पूरण कीधी, दानइ द्रव्य तणी कोडि दीधी ॥७॥ सत्कार मंडाया सार, दुखियां नइ ऊधरइ दातार । आपणइ देसि पलाइ. अमारि, आंप रहइ उत्तम आचारि ॥८॥
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