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________________ २०] [समयसुन्दर रासत्रय मन वचनइ काया मुणी, सुदर योग समग्गो रे । सीतादिक पीड़ा सहइ, अनइ मरण उवसग्गो रे ॥ १ ॥ ए० एहवा गुण अणगार ना, वलि ते विद्या पूरा रे । प्रश्न पडतर परवड़ा, सबल तपस्या सूरा रे ॥१०॥ ए० उन्हालइ आतापना, सीयालइ सहइ सीतो रे । वरषा इंद्री वसि करइ, चारितीया सुध चीतो रे ॥११॥ एक संवेगी सूधा यती, मोटा साध महतो रे। महानुभाव मुनीसरू, विनयवंत जसवंतो रे ॥१२॥ एक क्रोध कषाय नहीं किहां, कठिन क्रियानुष्ठानो रे। सुमति गुपति गुण सोहता, ध्यान धरम सावधानो रे ॥१३॥ एक कुखी संबल कुल तिला, निरमम निरहंकारो रे । गोचरि करइ गवेषणा, अति सूझतउ ल्यइ आहारो रे ॥१४॥ ए० मुनिवर मासखमण तणइ, पारणइ तेथि पधात्या रे। दरसण धनदेव देखतां, निज आतम निस्तास्या रे ॥१५॥ ए० साम्हउ आयउ साधु नइ, परमाणंद मनि पावइ रे । मिश्री दूध मीठा घणु, वांदी नइ विहरावइ रे ॥१६॥ ए० ते धनदेव सिंहा थकी, पुण्य तणई परभावइ रे। हुयउ नागकुमार हुं, देवता मोटइ दावइ रे ॥१५॥ ए० धनदत्त भावभगति धरी, आणंद अंग न मावइ रे। सेलड़ीरस अति सूझतउ, विधि सेती विहरावइ रे ॥१८।। एक भाव खंड्यउ पडिलाभतां, तिण वेला तिण्ह वारो रे। तूंते धनदत्त ऊपनउ, सुख लाधां अति सारो रे ॥१६॥ ए० For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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