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[समयसुन्दर रासत्रय
तापस परणावी तिहाँ, आपणी पुत्री एको रे। रत्नवती रूपइ भली, वारू विनय विवेको रे ।।१।। कु० खिणमइ बइसि खटोलड़ी, आया आश्रम एथो रे। कुमर गयउ कूया भणी, आणिवा नीर अनेथो रे ॥१६॥ कु० साप झंब्यउ तेहनइ सही, ए त्रिहुं ना अवदातो रे । इम कहिनइ ऊभउ राउ, रूपवती न रहातो रे ॥१७|| कुछ त्रीजी पणि बोली तिहां, तिम हिज ते ततकालो रे । कुसमवती मांगइ कूबड़उ, वाचा अविचल पालो रे ।।१८।। कुछ मानी बात महीपति, आण्यउ निज आवासो रे। चउरी बांधी चिहुं दिसइ, हरिणाखी करइ हासो रे ॥१६॥ कु० गीत कोई गायइ नहीं, अंगि नहीं उछरंगो रे । समयसुदर कहइ सहु कहइ, सरिज्यो कां ए संगो रे ॥२०॥ कु०.
[सर्व गाथा १५२ ]
दूहा ३ . कुमरी मनि कौतुक थयउ, चिटपट लागी चित्ति । कहिस्यइं इण विन को नहीं, प्रियु आगली प्रवृत्ति ॥१॥ चउरी मांहि चतुर गई, अवसर दीठउ एह । सेवा करी संतोषस्यां, नयण जणावइ नेह ॥ २॥ . सोहलउ गायइ सुंदरी, तिण्हे मिली एक तान । कहइ कदाचि खुसी थकउ, प्रीतम बात प्रधान ।। ३ ॥
[सर्वगाथा १५५ ]
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