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प्रियमेलक चौपई ]
भूपति प्रमुख सहु को भणई, अक्षर सखरा एहो रे ।
तिरजात कुण थायइ तिहां, किरइ कारिज केहो रे || ४ || कु० वांचइ पोथी वांमणउ, सांभलिज्यो सहु कोयो रे, सिंहलसुत निज नारिसु, चढ्यउ दरियह चित्त लायो रे ॥५॥ आगइ दरियs आवतां, प्रवहण भागउ प्रवायो रे । आज कथा कही एतली, वलि विहाणइ कहिवायो रे || ६ || कु० हिव कहि आगई कि हुयउ, बोली धनवती बालो रे । कहिवा लागउ कूबड़उ, भामिनी बोली भूपालो रे ||७|| कु० वलि परभाति आवीया, रस लीधा राय राणो रे ।
कोरी पोथी कूबड़उ, वांची करइ वखाणो रे ||८|| कु० काष्ठ आधारि कुमर गयउ, नयर रतनपुर नामो रे । रत्नवती सुता रायनी, उणि परणी अभिरामो रे || || कु० रत्नवती नइ ले चल्यउ, आवतां समुद्र नइ आधो रे । प्रोहित कुमर नइ पापियई, नाख्यो नीर अगाधो रे || १०|| कु० पोथी बांधी पंडितई, एतलउ संबंध आजो रे । काल्हि कहिसि इहां आवज्यो, केहनइ छइ काम काजो रे || ११|| कु० रत्नवती न सकी रही, ततखिण बोली तामो रे । कहि आगलि कांसु थय, पंडित करूय प्रणामो रे ||१२|| कु० बीजी पण बोली अइ, सहु लोकां नी साखो रे ।
त्रीइ दिन आया तिहां, लोक मिली नइ लाखो रे ||१३|| कु० वांचइ आगइ वामणउ, अदभुत राग उदारो रे । पाणी मई पड़त थक, किणही उपाड्यउ कुमारो रे || १४ || कु०
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