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।। समयसुन्दर रासत्रय
दूहा ६
कंथा खाट मुकी किहां, कांता रहित कुमार। नगर कुमर ते निरखता, निरखी त्रिण्हे नारि ।। १ ॥ केइक दिन रहतां थकां, विस्तरी सगलइ वात । कुमरी त्रिण तपस्या करई, परमारथ न प्रीलात ॥२॥ बोल एक बोलइ नहीं, दिव्य रूप कृश देह । अन्न पान को आणि घई, तउ ते खायइ तेह ॥ ३ ॥ राजा मनि आवी रली, साचउ एहनउ सत्त । जिम तिम बोली जोइजई, चिटपट लागी चित्त ।। ४ ॥ राजा पडह फेरावियउ, सांभलिज्यो सहु कोउ । पुत्री द्युतसु पुरुष मई, जुवति बोलावइ जोउ ॥५॥ पड़ह छब्यउ वामण पुरुषि, पुहतउ राजा पासि । ऊठि प्रभाते आवज्यो, तुरत बोलाविस तास ॥ ६ ॥
[सर्वगाथा १३२] ढाल (७) मई वइरागी संग्राउ, एहनो ऊठि प्रभाति आवीयउ, राजा रूड़ी रीतो रे। सेठ सेनापति सूत्रवी, मंत्री महाजन मीतो रे ॥१॥ कुमरी बोलावइ कूबड़उ, लोक मिल्या लख कोड़ो रे। अचरिज लोक नई ऊपजई, जुगति कहइ हीया जोड़ो रे ॥२॥ कु० कोरा पाना काढिया, वलि कहइ एहवी वातो रे। अक्षर ए देखई नहीं, ते जाणीजइ त्रिजातो रे ॥३॥ कुछ
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