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________________ प्रियमेलक चौपई ] [१३ पाणी रे पायउ हुं तरसी थई रे, खिण इक मइ न खमाय । जी० । कंठ सूकइ काया तपइ रे, जीभइ बोल्यु न जाय । जी० ॥२॥ कथा खाट कांता तजी रे, जल लेवा नइ जाय । जी०। कुमर आगइ दीठउ कूयउ रे, थोडुसुनीचउ जल नई थाय॥३॥ भुजंग बोल्यउभाषा मनुष्य नीरे, काढि मुनइ करि उपगारजी। लांबउ मुक्यउ आघउ लूगड़उ रे, काट्यउ साप कुमार । जी०॥४॥ झाट मारी सांप झूबियउ रे, कूबड़ कीधउ कुरूप । जी० । कुमर कहइ कांसु कीयउ रे, अधम करइ ए सरूप । जी० ॥५॥ साप कहइ गुण जाणे सही रे, आगइं देखिस आप। जी० । संकट कष्ट पड्यां सही रे, सानिध करिस्यइ तु नइ साप ॥६॥ अचरिज कुमर नई ऊपनउ रे, पाणी ले आयउ नारी पासि जी०। पी पाणी सीतल प्रिया रे, वनिता रहीय विमासि जी० ॥७॥ कुण पुरुष ए कूबड़उ रे, पर पुरुषां न रहुं पासि जी० । उफराठी ऊभी रही रे, वामणउ करइ रे वेषास जी० ॥८॥ नीर पीधां विण नीसरी रे, कंथ गयउ मुझ केथि जी। वनि वनि जोयउ वालहउ रे, अबला न दीठउ एथि जी० ॥६॥ भूली रे भभंती गई भामिनी रे, तोरथ प्रियमेल तेथि जी०। त्रीजी रे बइठी नारी सिहां रे, जुवती बइठी छइ जेथि जी० ॥१०॥ त्रिण्हे नारी तपस्या करई रे, बोलई नहीं एक बोल जी०। समयसुन्दर कहइ हुं साख युं रे, एहनउ सील अमोल जी० ॥११।। [ सर्व गाथा १२६] Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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