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[ समयसुन्दर रासत्रय
वे नारी बइठी रहई रे लाल, जोतां प्रियु दिन जात ह० । समयसुन्दर कहइ सांभलउ रे लाल, वलि कहुं त्रीजी बात ह०||१६|| [ सर्व गाथा १०६ ]
सोरठिया दूहा ६
पड़त पाणी मांहि, किणही कुमर उपाड़ियउ । पूरब पुण्य पसाहि, आण्यउ तापस आश्रम ||१|| आनंद तापस अंग, दीठां लक्षण देहना | रूपवती मनि रंग, पुत्री परणावी पिता ॥२॥ कंथा दीधी काइ, कर मूंकावण कुमर नई | सउटका सुखदाइ, खिरी पड़इ खंखेरतां ॥३॥ सखर खटोली साइ, आपी आकासगामिनी । जहां भाव तहां जाइ, मन जिहां मानइ आपणउ ||४|| इस खटोली बेड, आकास मारगि ऊडीया । धनवती ध्यान धरेउ, जाउं धनवती छइ जिहां ||१५|| नगरी कुसम निजीक, खिण मइ गई खटोलड़ी । नर नारी निरभीक, आवी बेऊ
तिण अवसरि तरसी थई रे,
ढाल (६) राग - वयराड़ी, जलालिया नी
ऊतस्या ||६||
कुली रे काया तावड़ आकरउ रे,
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[ सर्व गाथा ११५ ]
रूपवती करइ अरदास; जीवन मोराजी ।
पापिणी लागी मुनई प्यास; जी० ॥१॥
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