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________________ १२] [ समयसुन्दर रासत्रय वे नारी बइठी रहई रे लाल, जोतां प्रियु दिन जात ह० । समयसुन्दर कहइ सांभलउ रे लाल, वलि कहुं त्रीजी बात ह०||१६|| [ सर्व गाथा १०६ ] सोरठिया दूहा ६ पड़त पाणी मांहि, किणही कुमर उपाड़ियउ । पूरब पुण्य पसाहि, आण्यउ तापस आश्रम ||१|| आनंद तापस अंग, दीठां लक्षण देहना | रूपवती मनि रंग, पुत्री परणावी पिता ॥२॥ कंथा दीधी काइ, कर मूंकावण कुमर नई | सउटका सुखदाइ, खिरी पड़इ खंखेरतां ॥३॥ सखर खटोली साइ, आपी आकासगामिनी । जहां भाव तहां जाइ, मन जिहां मानइ आपणउ ||४|| इस खटोली बेड, आकास मारगि ऊडीया । धनवती ध्यान धरेउ, जाउं धनवती छइ जिहां ||१५|| नगरी कुसम निजीक, खिण मइ गई खटोलड़ी । नर नारी निरभीक, आवी बेऊ तिण अवसरि तरसी थई रे, ढाल (६) राग - वयराड़ी, जलालिया नी ऊतस्या ||६|| कुली रे काया तावड़ आकरउ रे, Jain Educationa International [ सर्व गाथा ११५ ] रूपवती करइ अरदास; जीवन मोराजी । पापिणी लागी मुनई प्यास; जी० ॥१॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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