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प्रियमेलक चौपई ]
- [११ चतुर नारी इम चिंतवइ रे लाल, कहउ हिव हुं कर केम । ह० सील मोरउ ए खंडस्यइ रे लाल, आपदा पड़ी मुझ एम ॥ह०६॥ है है वन मोरउ हीयउ रे लाल, पाथर थीय प्रचंड । हरि० वाल्हेसर थी वीछड्यां रे लाल, खिण न थयउ सतखंड ।।ह०१०॥ रे रे दैव तुका रूठउ रे लाल, कुण अपराध मई कीध । ह० किहां पीहर किहां सासरउ रे लाल, दुख मांहे दुख दीध ।।ह०११॥ विरह विलाप करु किसारे लाल, रोयां न लाभइ राज।ह. कोई वचना, कहुं केलवी रेलाल, ए पांच टाल्यु आज ।ह०१२।। प्रोहित हुं तुझ वसि पड़ी रे लाल, सुख भोगवि ज्यु सुहात ।ह० पणि बारहीयउ प्रियु तणउ रे०, कीधां पछी काइ बात ह० १३।। जोरइं प्रीत जुड़ई नहीं रे लाल, पड़खि मुनइ पंचराति । हरि० रत्नवती सील राखीयउ रे लाल, प्रणमीजइ परभाति ॥ह० १४॥ आगई दरियउ ऊछल्यउ रे लाल, भागी बेड़ी भड़ाक । हरि० कोलाहल लोके कीयउ रे लाल, हा हा पड़ी बुबहाक ।।ह० १५॥ लाधउ कुमरी लाकड़उ रे लाल, तरती गई जल तीर ह० । प्रियमेलक पणि पामीयउ रे लाल, दुःख करती दिलगीर ह०॥१६॥ प्रियमेलक भेद पूछियउ रे लाल, पहुंती धनवती पासि ह । नाह विना बोलुनहीं रे लाल, ए यक्ष पूरस्यइ आस ह० ॥१०॥ प्रोहित ते पणि पापीयउ रे लाल, जीवितउ नीसरयउ जाणि ह० । नगर कुसमपुर नउ धणी रे लाल, मुहतउ थयउ तसु माणि ॥१८॥
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