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[समयसुन्दर रासत्रय
Anand
राजा पुरोहित रुद्र, संप्रेडण साथइ दियउ। खोष्टउ मन में क्षुद्र, सिंहलद्वीप साम्हा चाल्या ॥४॥
[सर्व गा०६०] ढाल (५) अलबेल्यारी प्रवहण तिहाथी पूरियउ रे लाल,
___ सहु सुकीधी सीख ॥ हरिणाखी रे। आसीस दीधी एहवी रे लाल, विलसउ कोड़ि वरीस ॥हरि०१॥ तई मेरउ मन मोहियउ रे लाल, मानि मोरी अरदास ॥ हरि० प्रारथियां पहिड़इ नहीं रे लाल, उत्तम पूरई आस हरि० २॥ रत्नवती रूप रंजियउ रे लाल, प्रोहित आण्यउ पाप ।हरि० नांखु कुमर नइ नीर मंइ रे लाल, एहनइ भोगवइ आपहिरि०३।। सिंहलसिंह मारु सही रे लाल, हुइ कुमरी मुझ हाथि । हरि० जनम जीवित सफलउ करु रे०, सुख भोगवं इण साथि ।।ह०४॥ प्रवहण वहतां पापियइ रे लाल, लंपट लाधउ लाग । हरि० दरिया मांहि नांखी दीयउ रे०, ऊंड उ जेथि अथाग हरि०५॥ रुद्र पुरोहित रोवतउ रे लाल, करइ रे आकंद पोकार । हरि० हा हा दैव किसुहुयउ रे लाल, किम जल बूड़उ कुमार ह०६॥ एह अखत्र इणइ कीयउ रे लाल, किसु न करइ कामंध । हरि० हुँ केथी थाउं हिवइ ते लाल, धणि पाखइ सहु धंध ॥हरि० ७॥ प्रोहित प्रारथना करइ रे लाल, भोगवि मुझसु भोग । हरि० हुं किंकर तोरउ हुस्युरे लाल, सुदरि म करि तुं सोग ।।१०८॥
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