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प्रियमेलक चौपई ]
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पुछ्युं कुमरी प्रेम सु रे, भेद कहउ भरतार | ए वयराग तुम्हे आदस्यउ, किम राग तणइ अधिकार रे । १३० कुमरई मन मांहि अटकल्यउ रे, स्त्रीनइ न कहीयइ साच । वली विसेस वात सउकिनी, वदइ पंडित एहवी वाच रे । १४० कुमर कहइ वात केलवी रे, सुणि सुंदरि मुझ संच । मा बाप थी मई वीड्यइ, राख्यउ अभिग्रह रंच रे || १५ || रा० सूस्युं धरती सर्वदा रे, पालीसि सील प्रताप । सूस लियउ म सुंदरी, मिलस्यइ नहि जां माइ बाप रे ||१६|| कहइ कुमरी सुण कंत जी रे, धन्य तुम्हें धस्य नेह | भगति मा बाप तणी भली, उत्तम पुत्र लक्षण एह रे || १७ ||रा०
भेद जाण्यउ सहु भूपती रे, चिन्तातुर थयउ चित्त । कुमर नई पूछ किहां वसउ, कुलवंश कहउ सुपवित्त रे । १८० कुमर कहउ कुल आपणउ रे, वंश अनइ गाम वास । समयसुंदर कहइ सहु सुखी रही रत्नवती नीरास रे || १६ ||रा० [ सर्व गाथा ८६ ]
सोरठिया दूहा ४
रत्नप्रभ हिव राय, कुमरी संडण करइ | राखी रती न जाय, सुख लहिस्यइ गइ सासरइ ||१|| मणि माणिक बहु माल, मोती जवहर मूंगीया । रतन अमूलिक लाल, चीर पटंबर चरणिया ||२|| सहु संप्रेडण साज, कुमरी नई राजा कीयउ । जतने घणे जीहाज, बइसाख्या बेऊ जणा ||३||
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