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८]
[समयसुन्दर रासत्रय कुमर महा अति कौतकी रे, आणी उपगार बुद्धि । पड़ह छब्यउ निज पाणि सु, सापुरषां साची सिद्धि रे ॥४॥रा० कुमर आण्यउ कुमरी कन्हइ रे, निर्मल आण्यउ नीर। उहली मुद्रडि आपणी, सहु छांध्यउ कुमरी शरीर रे ॥ ५॥रा० पाणी पायउ प्रेम सु रे, ऊठि बइठी थई आप। कुमरइ उपगार ए कियउ, बहु हरख्या माइ नई बाप रे ॥६॥रा० रूपई दीठउ रूयड़उ रे, गुण दीठउ उपगार। उत्तम कुलि तिण अटकल्यउ रे, प्रगट्यउ पुण्य प्रकार रे ॥७॥रा० रत्नप्रभ गुण रंजियउ रे, कीधउ कुमरी वीवाह । दीधउ कुमर नई दायजउ, अधिकउ कुमरी उच्छाह रे ।।८।। रा० राति पड़ी रवि आथम्यउ रे, जाग्यउ मदन जुवान । रंगमहुल पहुता रली रे, वारू जाणे इंद्र विमान ॥६।रा० वर पल्लंग विछाइयउ रे, पाथस्या बहु पटकूल । अगर उखेव्या अति घणा, महकई परिमल अनुकूल ॥१०॥ रा० दीवा कीधा चिहुं दिसई रे, रत्नवती बहु रंग। कुमर पलंग छोड़ी करी, सुतउ धरती तजि संग रे ॥११॥ रा० चतुर नारी मनि चीतवइ रे, करम फूटउ मुझ कोय । सेज छोड़ी धरती सूयइ, रमणी जीवितई नइ रोय ।।१२।। रा०
यतः
घरि घोड़उ नइ पालउ जाइ, घरि धीणउ नई लूखउ खाइ । घरि पलंग नइ धरती सोयइ, तिण री बइरि जीवतइ नइ रोवइ ।।
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