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________________ प्रियमेलक चौपई ] मन गमती ढाल मारुणी जी, दुखियां जगावइ दुक्ख । समयसुन्दर कहइ सुणतां थकां जी, सुखियां संपजइ सुक्ख ॥१४॥ [सर्वगाथा ६३ ] दूहा सोरठिया ३ कुमरइ पणि इक कोय, लाधउ लांबउ लाकड़उ । तरतउ तरतउ तोय, पारई पहुँतउ पाधरउ ॥१॥ जहवइ आगई जाय, नगर रतनपुर निरखीयउ। रत्नप्रभ तिहाँ राय, राणी रतनासुदरी ॥२॥ रतनवती बहु रूप, राजा नई बेटी रतन । सुदर सकल सरूप, भर जोवन आवी भली ॥३॥ [सर्व गाथा ६६] ढाल (४) राग-आसाउरी, चाल-सहजई छेहड़उ रे दरजणि स० वालि रे भर जोवन माती, तिण अवसर वाजइ तिहां रे, ढंढेरा नउ ढोल । चउरासी चहुटे भमइ, बोलइ वलि एहवा बोल रे ॥ १ ॥ राजा नी कुयरी, मरइ रे साप खाधी सुदरी। को जीवाड़इ रे, कुमरी को जीवाड़इ । आंकणी। गारुडी नाग मंत्रा गुण्या रे, मरद्या मोरी गद्द । मणि पणि डंक ऊपरि मूकी, गुण न थयउ ते गया रद रे ॥२॥रा० हिव वैद्ये हाथ काटक्या रे, उपजइ नहिं को उपाय। मुरछागत कुमरी मरइ, जीवित हाथां मांहि जाय रे ॥३॥ रा० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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