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[समयसुन्दर रासत्रय आधी राति ऊठियउ जी, सुंदर लीधी साथि । सिंहलसुत महा साहसी जी, हथियार तरवारि हाथि ॥ ४ ॥ तुरत गयउ दरिया नई तटइ जी, समुद्रे चढ्यउ साहसीक । प्रवहण बइठउ पर दीपां भणी जी, नारि नई लेई रे निजीक ॥५॥ आगलि जातां दरियउ ऊछल्यउ जी, तिम वलि लाग्यउ तोफान । प्रवहण भाग्यउ कोलाहल पड़यउ जी, अतिदुख पड़यउ असमान।६। पुण्य संयोगई पाम्यउ पाटियउ जी, धनवती लीधउ आधार । नारि सहती दुख नीसरी जी, पाम्यउ समुद्र नउ पार ॥॥ क० अबला चाली तिहांथी एकली जी, वसती जाउं किण वेगि । कंत विहूणी रूपवंत कामिनी जी, उपजई कोड़ि उदेगि ॥८॥ क० नगर निजीक नारी गई जी, पेख्यउ , एक प्रासाद । दंड कलस ध्वज दीपता जी, नवला संख निनाद ॥६॥ क० धनवती पूछी काइ धरमिणी जी, कहि बाई कुण ए गाम । कुण तीरथ एह केहनउ जी, ए महिमा अभिराम ॥ १०॥ क० गाम कुसमपुर गुणनिलउ जी, इंद्रपुरी अवतार । प्रियमेलक तीरथ परगड़उ जी, सहु जाणइ संसार ॥ ११ ॥ वेगि मिलइ प्रियु वीछड्यउ जी, नित तप करइ जे नारि । इहाँ बइठी अणबोलती जी, परता पूरइ अपार ॥ १२ ।। क० धनवती मौन वरत धरी जी, जाइ बइठी जोग ध्यान । नाह मिल्यां विण बोलूँ नहीं जी, ए हठ लीयउ असमान ॥१३॥
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