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[समयसुन्दर रासत्रय
यतो गाथा त्रयं :किं ताणं जम्मेणवि, जणणीए पसव दुक्ख जणएण। पर उवयार मुणो विहु, न जाण हिययंमि विष्फुरई ॥१॥ दो पुरिसे धरउ धरा, अहवा दोहिं पि धारिया धरिणी। उवयारे जस्स मई, उवयारं जो नवि म्हुसई ॥२॥ लच्छी सहाव चला, तओ वि चवलं च जीवियं होई । भावो तउ वि चवलो, उवयार विलंबणा कीस ॥३॥ सूर वीर अति साहसी मु०, उपगार मति मनि उल्लसी ॥११॥ कुमर कला काई केलवी मु०, भली रे हकीकति भेलवी ॥१२॥ कुमर छोडावी कुयरी मु०, कुं० सुजस सोभाग सिरी वरी॥१३॥ वात नगर मांहे विस्तरी मु० कु, सिगलइ कीरति संचरी ॥१४॥ धन धन कुमर धीरिज धस्यउ मु० कु, कुण उपगार मोटउ
कस्यउ मुं० कु० ॥१॥ वांटइ सेठ बधामणी मु०, भूप आयउ देखण भणी मु० ॥१६॥ खलक लोक देखइ खड़ा मु०, बोलई कुमर विरुद वड़ा मु०॥१७॥ कुमरी राग जाणी करी मु०, धन सेठइ आगइधरी मु०॥१८॥ परणावी पांचे मिली मु, राजा सेठ पूगी रली मु०॥१६॥ धन-धन नारि ए धनवती मु, पुरुष रतन पाम्यउ पती मु॥२०॥ महुल मंदिर रुड़े मालिए मु, आणंद करइ गउख आलिएमु०॥२१॥ काम भोग अधिकार ना मु०, सुख भोगवइ संसार ना मु०।२२॥ एह ढाल उपगार नी मु, समयसुन्दर कहइ सार नी मु०।२३।
[सर्वगाथा ४४ ]
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